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पत्र छगनलाल गांधीको

बल्कि बहुतसे मुसलमान तो पहले ही उसको अपना चुके हैं। खद्दरको अपनानेसे दो उद्देश्य सिद्ध होंगे। एक तो आपको अपने लिए कपड़ा मिल जायेगा, दूसरे आप गांवोंके लाखों भूखे गरीबों की सहायता कर सकेंगे। खुदाके वास्ते और गाँवोंके लाखों भूखे गरीबोंके वास्ते आप सब आज ही बल्कि इसी क्षणसे चरखा और कताईको अपना लें।

[अंग्रेजीसे]
सर्चलाइट, २३–९–१९२५
 

१२१. पत्र : छगनलाल गांधीको

२३ सितम्बर, १९२५ से पूर्व][१]

चि॰ छगनलाल,

मैंने तुम्हें ट्रेनपरसे पत्र तो लिखा था; मिला होगा। वहाँ सबको बीमारीने घेर लिया जान पड़ता है। सबका हाल-चाल लिखना।

मुझे लगता है कि स्वयं नीमु[२] अभी अपने विवाहके विषयमें विचार करनेकी झंझटमें पड़ने लायक नहीं हुई है। मेरी इच्छा तो अवश्य दो वर्ष विवाह टालनेकी रहेगी। रामदास रुके तो मैं रुकनेका ही आग्रह करूँगा। इसमें मैं केवल नीमुके भलेका विचार करता हूँ। विवाहके बाद नीमु रामदासके साथ ही रहेगी। सामान्य रूपसे परिणामतः वह सगर्भा भी होगी। मैं इस विचार-मात्रसे काँप उठता हूँ। नीमु बच्चेका भार उठाने लायक तो नहीं ही है। इस सगाईमें मुझे तुम्हारी और रामदासकी इच्छाके आगे झुकना पड़ा है। यदि रामदास प्रतिकूल रहता तो मैं तुम्हें इस विचारसे रोकता। जमनादासकी बातसे तो मुझे लगा कि वे नीमुको बेचनेकी स्थितिपर पहुँच गये थे। लेकिन वह दोष मैं अपने सिरपर नहीं ले सकता। सगाईके लिए तुम और में दोनों उत्तरदायी है।

मेरी इच्छा सगाईको दो वर्षतक स्थगित रखनेकी है, ऐसा नीमुसे अवश्य कहना और इसके बाद ही सगाई करना। सगाईकी शास्त्र-विधि अमरेलीमें ही की जाये। यदि वह चाहे कि लखतरमें विवाह सम्पन्न हो तो मैं विरोध नहीं करूँगा, समझानेका प्रयत्न करूँगा। उस हालतमें मैं तो केवल उसे एक धार्मिक क्रिया समझकर उसमें भाग लूँगा। रामदास भी यही चाहता है। यदि बा हस्तक्षेप करे तो उसे शान्त रखना। मैंने बाको लिखा तो है। अब जैसा ठीक लगे वैसा करना। यदि नीमु बहुत जल्दी संभल गई तो मैं आगामी वर्ष राह जोहनेका आग्रह नहीं करूँगा। वह जल्दी सयानी न दिखे, ऐसी मेरी इच्छा है। ईश्वर उसकी मदद करे।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ७७४४) से।
सौजन्य : छगनलाल गांधी
  1. पत्र २३–९–१९२५ को छगनलालको मिला था।
  2. छगनलालकी सालीकी पुत्री।

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