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गये तो क्या यह हमारी नैतिक गुलामीकी जंजीरमें एक और कड़ी न होगी? क्या यह किसी विश्वविद्यालयके आदर्शके विरुद्ध नहीं है? विश्वविद्यालय ही में तो हम अपनी उन्नतिके लिए स्वतन्त्र वायुमण्डलकी आशा कर सकते हैं। क्या इससे हमारे आदर्श फौजी सांचे में न ढल जायेंगे? विदेशोंके विश्वविद्यालयोंकी मेरी जानकारी सीमित है, फिर भी जहाँतक मुझे ज्ञात है, इंग्लैंड और अमेरिका-जैसे स्वाधीन देशोंके विश्वविद्यालयों में भी फौजी शिक्षा अनिवार्य नहीं है। यदि हम राजनीतिक पहलुओंको छोड़ भी दें तो भी क्या हमें लोगोंको उनकी अन्तरात्माको प्रेरणाके अनुसार चलनेकी इजाजत नहीं देनी चाहिए। यह तो ऐसा अधिकार है जिसकी रक्षाके लिए पिछले युद्धके समय बहुतसे अंग्रेजोंने जेल जाना पसन्द किया था। उनमें से सभी मौतसे नहीं डरते थे।
ये सब बातें हैं जिनपर पूरा ध्यान देनेकी आवश्यकता है। दूसरी ओर, शारीरिक शिक्षाको अनिवार्य बनानका समर्थन में खुशीके साथ करूँगा—और सच पूछिए तो मैं उसकी वकालत भी करता हूँ। मैं समझता हूँ कि यदि यह अनिवार्य कर दी जाये तो विश्वविद्यालयको शिक्षाको सब आवश्यकताएँ पूरी हो जायेंगी।
उन लोगोंके लिए जो जीवन या राजनीतिके सम्बन्धमें जुदा विचार रखते हैं, हमें विश्वविद्यालयका दरवाजा बन्द नहीं करना चाहिए। यों भी ऐसी संस्थाओं में ऐसी बहुत-सी बातें हैं जिनसे व्यक्तिको स्वाधीनता बाधित होती है।

मैं धर्मतः शान्तिवादी हूँ। अतएव विश्वविद्यालयमें फौजी शिक्षाको अनिवार्य कराने के सम्बन्धमें पत्र-लेखकने जो भी कहा उसकी हृदयसे पुष्टि करता हूँ। परन्तु केवल लाभालाभकी तथा राष्ट्रीयताकी दृष्टिसे भी उनकी युक्ति सबल मालूम होती है। निश्चय ही विश्वविद्यालयकी फौजी टुकड़ीका उपयोग ऐसे उद्देश्योंसे किया जा सकता है जो राष्ट्रीय हितोंके विरुद्ध हों। इतना ही नहीं; सरकारका रवैया जबतक राष्ट्र विरोधी है तबतक यह भी सम्भावना है कि अवसर आनेपर छात्रोंकी इन फौजी टुकड़ियोंका इस्तेमाल राष्ट्रकी जनताके खिलाफ ही किया जाये। उदाहरणके लिए, किसी भावी डायरको जलियाँवाला बागकी पुनरावत्तिके हेतू विश्वविद्यालयके इन छात्रोंका उपयोग करनेसे कौन रोक सकता है? और क्या यह नामुमकिन है कि जब साम्राज्यके व्यापारके हितमें चीन और तिब्बतके निर्दोष लोगोंपर आधिपत्य जमाना आवश्यक मालूम हो तो उनपर चढ़ाई करनेके लिए क्या ये नौजवान स्वयं अपनी सेवाएँ अर्पित कर दें? पिछले महायुद्धमें भाग लेनेवाले कुछ युवक स्वयंसेवकोंने अपने कार्यका समर्थन यह कह कर किया था कि उसके द्वारा हम युद्ध-कलाका अनुभव मिला है। सीमा-प्रान्तके इलाकोंमें ब्रिटिश भारतीय सेनाकी चढ़ाइयाँ, जाने या अनजाने, ठीक इसी कारणसे, प्रेरित हुई थीं। जो लोग सफलतापूर्वक साम्राज्योंका संचालन करते हैं उन्हें मनुष्य-स्वभावका सहज ज्ञान होता है। कोई जान-बूझकर बुरा या दुष्ट नहीं