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भाषण : पटनाकी सार्वजनिक सभामें

लोगोंके मन पवित्र नहीं है और जिनके सम्बन्ध परस्पर सौहार्दपूर्ण नहीं हैं, अपनेआपको और दुनियाको, दोनों जातियोंके बीच एकता है, ऐसा धोखा देना मुझे पसन्द नहीं है। जिन सभाओंमें केवल एक ही जातिके लोग भाग लेते हैं, मैं उनमें भी शामिल होना पसन्द नहीं करता। मैं तो हिन्दू और मुसलमानों, दोनोंके साथ बराबरी और निष्पक्षताका व्यवहार करना चाहता हूँ—जैसा कि भारतीय ही नहीं, पश्चिमके लोग भी स्वीकार करते हैं कि मैं स्वराज्य और असहयोग आन्दोलन द्वारा किसीको हानि नहीं पहुँचाना चाहता। उनका उद्देश्य तो सारे संसारका कल्याण करना है। इसलिए जब इन दो जातियोंके लोग एक-दूसरेसे झगड़ते हैं और मुझे अपनी-अपनी तरफ घसीटनेका प्रयत्न करते हैं तो वैसी स्थितिमें मैं किसी एक जातिको सभामें भाग नहीं ले सकता। में दोनों में से एक भी जातिकी तरफदारी नहीं कर सकता। मैं यह नहीं कह सकता कि हिन्दू हमेशा ठीक काम करते हैं अथवा मुसलमान कभी ज्यादती नहीं करते। सच तो यह है कि गलती दोनोंकी है, और दोनोंका ही दिमाग खराब हो गया है। ऐसी स्थितिमें में तो सिर्फ इतना ही कर सकता हूँ कि दोनोंसे दूर रहूँ और भगवानसे यह प्रार्थना करूँ कि वर्तमान आपसी मनमुटावको देखकर मुझे जो दुख और पीड़ा होती है उसे वह दूर करे। हिन्दू और मुसलमान आपसमें जीभर कर लड़लें तब में शायद उनसे पूछ सकूँगा कि उन्हें इसका क्या लाभ हआ। इन दोनों जातियोंके झगड़ेके बारेमें मैं तो इतना भी नहीं कहना चाहता था, पर अध्यक्ष महोदयने इस विषयमें जो कहा उसीसे मुझे भी अपने विचार बताने पड़े। फिर भी मेरे मनमें यह विश्वास और आशा बनी हुई है कि वर्तमान झगड़ोंके बावजूद हिन्दू और मुसलमान जल्दी ही एक हो जायेंगे। जैसा कि मौलाना शौकत अलोका कहना है, यह एक क्षणिक उन्माद है और जल्दी ही दूर हो जायेगा।

इसके बाद महात्माजीने चरखे और खद्दरके महत्त्व और उनको आवश्यकताको चर्चा करते हुए कहा कि निःसन्देह हिन्दू-मुस्लिम एकता मुझे प्रिय है, किन्तु वर्तमान स्थितिमें एक ही चीज है जो मुझे उतनी ही प्रिय है और जिसका काम में कर सकता हूँ; और वह है चरखा। मुझे इस बातका दृढ़ विश्वास है कि भारतको गरीबी दूर करनेकी सामर्थ्य अगर किसी चीजमें है तो सिर्फ चरखमें है। यदि आप भारतके लाखों भूखसे पीड़ित लोगोंकी गरीबी दूर करना चाहते हैं, यदि आप वर्षमें कमसे-कम चार मासतक बेकार रहनेवाले ग्रामवासियोंको कोई उपयोगी धन्धा सिखाना चाहते हैं तो आपके सामने चरखके सिवा दूसरा कोई साधन नहीं है। जो लोग इसका विरोध करते हैं, क्या वे इसके बदले में कोई और चीज सुझा सकते हैं। लेकिन चरखा भी इस काममें तभी सफल हो सकता है जब सभी लोग उसे अपनायें। इसके बाद महात्माजीने नवनिर्मित अखिल भारतीय चरखा संघका उल्लेख किया और खान बहादुर सरफराज हुसैन खाँके संघका सदस्य बनने तथा चरखा चलाना स्वीकार करनेके लिए उन्हें और जनताको बधाई दी। उन्होंने कहा कि संघके सदस्योंके लिए खद्दरका

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