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खादी कार्यक्रम

सकते, यह बात तो सब लोग समझ गये है। मददके दौरान भी खादीकी किस्ममें धीरे-धीरे ही सही परन्तु उत्तरोत्तर सुधार होना चाहिए, दाम घटने चाहिए और मदद भी कम होनी चाहिए। यह सब हो रहा है। खादीकी किस्ममें सुधार हुआ है, दाम कम हुए हैं और मदद भी कम हो गई है। अमरेली कार्यालयका माल बम्बई जाये, यह बात मेरे लिय दुःखदायी नहीं है। दुःखदायी बात तो यह है कि उसकी अमरेलीमें बहुत कम खपत है। यह बात हमारे देशकी दुर्दशाको परिचायक है। अमरेलीकी समझदार जनताको खादी पहननेके सहज धर्मकी बात नहीं सूझी है। वह घरके सामने बहती गंगाका उपयोग नहीं करती। इसका इलाज तो समय ही करेगा। स्थानीय खपत करनेके प्रयासमें यदि खादी कार्यालयकी कोई भूल हो तो अमरेलीके नागरिकोंको उसका ध्यान उस ओर खींचना चाहिए। कार्यालय मेरे विचारानुसार अमरेलीमें खादी खपानेका प्रयत्न तो करता है, लेकिन उसे अभी जैसी चाहिए वैसी सफलता नहीं मिली है। ऐसी हालतमें अमरेलीके गरीब लोगोंको कातनेसे मिलनेवाली मजदूरी जो मदद पहुँचाती है उससे वंचित नहीं किया जा सकता। हाँ, यह जरूरी है कि जो स्त्रियाँ सूत कातती हैं, वे खादी पहनें। लेकिन अनुभवसे मालूम होता है कि यह एकाएक नहीं हो सकता। जो बहनें मजदूरी पाने के लिए कातती है वह तो केवल आजीविकाके विचारसे ही कातती हैं। उनसे महँगी खादी खरीदनेके लिए कदापि नहीं कहा जा सकता। उन्हें हम खादी सस्ती करके देंगे, तभी वे उसे पहनेंगी।

इसलिए खादी-सेवक यदि खादीको पूर्णतया स्वाश्रयी बनाना चाहता है तो उसे सम्बन्धित कठिनाइयोंको ध्यानमें रखना चाहिए। यदि नहीं रखेगा तो खादी-प्रचार हो ही नहीं सकता। ऐसे समयमें व्यवहार-बुद्धिका प्रयोग करना चाहिए कि कहाँ कम परिणामसे सन्तुष्ट रहना चाहिए और कहाँ सम्पूर्ण परिणाम प्राप्त किये बिना सन्तुष्ट रहना अनुचित होगा।

लेकिन ऐसे पूर्ण क्षेत्रमें काम न करनेवाले तथा सम्पूर्णताकी ही इच्छा करनेवाले सेवकोंकी भी हमें गरज है। उनके लिए निम्नलिखित अन्य रास्ते हैं :

  1. जो स्वयं समर्थ हों—अर्थात् जिनमें काम करनेकी और कम पैसोंपर निर्वाह करनेकी शक्ति हो—वे अपना सारा समय कातने और पींजनेमें व्यतीत करें; तथा अगर उचित जान पड़े तो बुननेका काम भी करें और इस तरह स्वावलम्बी बनें।
  2. जिन लोगोंमें ऐसी शक्ति न हो उन्हें अपने धन्धेमें से बचनेवाले सारे क्षणोंमें सूत कातना चाहिए और उस सूतको देशके लिए दान करना चाहिए।
  3. यह कहना तो जरूरी होना ही नहीं चाहिए कि वे स्वयं खादी पहनें और अन्य लोगोंको खादी पहनने के लिए समझायें। खादीप्रचार किन सिद्धान्तोंपर निर्भर करता है, आइये हम यहाँ उनपर विचार करें।
  4. देशमें करोड़ों लोग इतने ज्यादा गरीब हैं कि उनके लिए दो-चार पैसे भी रुपयेके बराबर होते हैं।
  5. ऐसे करोड़ों लोग वर्षके कमसे-कम चार महीनोंतक बेकार रहते हैं।