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विविध प्रश्न

तो हम बाल्यावस्थामें ही विवाहके जंजालमें पड़ जाते हैं। ऐसी हालतमें विकारतृप्तिके साधनोंकी योजना करना और उनके प्रचारके लिए संस्थाओंकी स्थापना करना अज्ञान और अन्धानुकरणकी परिसीमा है। विकार रोके नहीं जा सकते अथवा उन्हें रोकनमें नुकसान है यह कथन ही अत्यन्त अहितकर है। यदि इस दुर्बल देशमें विकार-तृप्तिको उत्तेजित करनेवाला सम्प्रदाय चल निकला तो भारतवर्षकी प्रजा निःसत्त्व हो जायेगी और अन्तमें उसका नाश हो जायगा इसमें मुझे कोई शंका नहीं। विषयतृप्ति करते रहकर सन्तति नियमनके उपाय करना राक्षसी शरीर और राक्षसी खान-पानवालोंको भले ही नुकसान न पहुँचाये, किन्तु हिन्दुस्तानको तो संयमकी शिक्षा ही लाभ पहुँचा सकती है।

१०. अहिंसाका पालन करनेवाला किसी भी वाहनका उपयोग नहीं कर सकता। बहुतसे खाद्य पदार्थोंका भी उसे त्याग करना पड़ता है। तब यह प्रश्न उठता है कि परमात्माने ये पदार्थ और ये प्राणी किस लिए पैदा किये होंगे? यद्यपि प्रभुको इच्छा तो अगम्य है फिर भी कृपा करके इस बातका खुलासा कर दीजिए।

इसका जवाब ऊपर आ जाता है। फिर भी इतना और कहे देता हूँ कि अहिंसाका पालक आवश्यक वाहनका सर्वथा त्याग नहीं करता। बहुत-सी वस्तुओंका सर्वथा त्याग इष्ट है और कुछका यथाशक्ति त्याग ही बस है। प्रभुकी समूची सृष्टि एक दसरेसे ओतप्रोत है। हरएक प्राणी मनुष्यकी किसी-न-किसी इच्छाका मूर्त स्वरूप है। अतएव जिस प्रकार इच्छाका त्याग इष्ट है उसी प्रकार अन्य प्राणियोंके उपयोगका त्याग भी इष्ट है। सब अपनी-अपनी मर्यादा अंकित कर लें। जैसे कि जिसका काम मिट्टीसे चल सके वह साबुनका उपयोग न करे। पर साबुन काममें लानेवालोंकी निन्दा करके अधिक हिंसा-दोषका भागी भी न बने। काँटेदार अथवा गन्दी जमीनपर चलते समय जूतोंका उपयोग बाखुशी करे और जहाँ उसकी आवश्यकता न हो वहाँ नंगे पैर ही चले।

दूसरे कई प्रश्न ऐसे है जिन्हें यहाँ देनेकी आवश्यकता नहीं। पर उन प्रश्नोंका अनुमान नीचे दिये गये जवाबोंसे ही किया जा सकता है।

  1. व्यायाम करनेवालोंके लिए लंगोट पहनना नितान्त आवश्यक है। पाश्चात्य देशवासियोंने भी इसकी जरूरतको महसूस किया है।
  2. प्रातःकाल उठकर दातौन करके उसके बाद गर्म किया हुआ जल पीना चाहिए। इसमें फायदा है। बहुतसे साफ ठंडा जल पीते हैं। इसमें भी नुकसान तो नहीं है।
  3. गृहस्थ-जीवनमें बाल बढ़ाना मैल बढ़ाने के बराबर है। या फिर उन्हें साफ रखने में बहुत समय देना पड़ता है। पुरुषके लिए तो यही योग्य मालूम होता है कि वह छोटी-सी शिखाके सिवा सब भाग कैंची या उस्तरेसे कटवा डाले। यदि कोई मेरा कहना माने तो मैं तो लड़कियोंके बाल भी कटवाऊँ। हम अभ्यासवश यह मानते हैं कि बाल रखने में ही शोभा है। शोभा तो केवल बरतावमें है, बाहरी दिखावेमें नहीं। यह वहम है कि बाल कुदरती हैं इसलिए वे न कटाये जाने चाहिए। हम नख