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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कटवाते हैं। यदि न कटवायेंगे तो उनमें मैल भर जायेगा अथवा सारा दिन उन्हें साफ रखना होगा। स्नान द्वारा हम चमड़ीका मैल हमेशा दूर करते हैं। हमें यहाँ यह विचारनेकी आवश्यकता नहीं कि जो जंगलवासी हैं और जो बहुत-सी क्रियाएँ नहीं करते उनके लिए कौन-सा कायदा लागू होता है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २७–९–१९२५
 

१३६. टिप्पणियाँ
क्या यह सच है?

'मानवजीवन' में बोरसदके हाईस्कूलका विवरण पढ़कर मैं तो हैरान ही रह गया हूँ। यह विवरण सच्चा नहीं हो सकता, ऐसा मुझे हमेशा लगा करता है। बोरसदके हाईस्कूलके हेडमास्टरसे में मिला हूँ, ऐसा मुझे आभास है। उन्हें तो मैं एक बहादुर व्यक्तिके रूपमें जानता हूँ। बोरसदमें वल्लभभाई रहे हैं। वहाँ वल्लभभाईने अपनी विजय-पताका फहराई है, वहाँ मुख्याध्यापकका, माता-पिताका और विद्यार्थियोंका ऐसा पतन कैसे सम्भव है? एसेम्बलीके अध्यक्ष विठ्ठलभाई यदि केवल खादीकी पोशाकमें एसेम्बली में जा सकते हैं तो बोरसदके विद्यार्थी खादीकी पोशाक पहनकर स्कूलमें नहीं जा सकते?

इस विषयमें यदि भाई कालिदास दवेको[१] प्राप्त सूचना सही न हो तो मैं चाहता हूँ मुख्याध्यापक इसे सुधार दें। यदि सूचना सही हो और उसके बचावमें उन्हें कुछ कहना हो तो मैं उसे जानने व छापने के लिए तैयार हूँ। यदि उनके पास बचावमें कुछ कहनेको न हो तो मेरी इच्छा है कि पाठशालाको मान्यता प्रदान करवानेकी खातिर अध्यापक, न्यासी और माता-पिता इतने नीचे न उतरें।

चाईबासाकी गोशाला

चाईबासा छोटा नागपुर प्रान्तमें एक छोटा-सा कस्बा है। वहाँका प्राकृतिक दृश्य सुन्दर है और जलवायु अच्छी है। लोग मुझे वहाँकी गोशाला दिखानेके लिए ले गये थे। वहाँके मन्त्री उत्साही है। उनके विचार उदार हैं। लेकिन दानी लोग उनके विचारोंको व्यवहारमें लाने नहीं देते। जो टीका मैने अन्य गोशालाके सम्बन्धमें की है, वही टीका उसपर भी लागू होती है। यह गोशाला २७ वर्षसे चल रही है। इतने समयमें डेढ़ लाख रुपयका दान मिला तथा दस हजार पशुओंका पालन हुआ। प्रतिवर्ष दो सौ, तीन सौ पशुओं तकका पालन पोषण होता है। लेकिन इतने कार्यसे ही सन्तोष नहीं माना जा सकता। यदि कोई गोशाला नियमके साथ चले तो सत्ताईस वर्षोंमें वह लगभग स्वाश्रयी बन जाये। यहाँ दूध आदि भी होता है। लेकिन एक

  1. नवजीवन के शिक्षा-अंकके सम्पादक।