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पत्र : बिशननाथको

ही व्यक्ति कितना कर सकता है? जबतक गोशाला-शास्त्रको जाननेवाले व्यक्ति न हों तबतक जानवरोंकी परीक्षा आदि कैसे हो सकती है?

यह भी मालूम हुआ कि गोशाला मरे हुए ढोरोंको यों ही दे देती है; उनके चमड़ेकी कीमत नहीं लेती। मैं जितना विचार करता हूँ, यही देखता हूँ कि मरी हई गायोंके चमड़े आदिका उपयोग गोशालाकी मार्फत न करना गोवधको उत्तेजन देना है और गोरक्षा करनेकी अपनी शक्तिको कम करना है। गो-सेवकोंका एक बड़ा कार्य तो यही है कि वे मरे हुए जानवरोंके चमड़ेका व्यापार न करने सम्बन्धी अपन वहमको दूर करें। मरी हुई गाय जीवित गायकी लगभग प्राण-रक्षा करती है। इसके अर्थशास्त्रका में गम्भीर अध्ययन कर रहा हूँ; लेकिन अधूरा अध्ययन भी कमसे-कम इतना तो सिद्ध करता ही है कि इस चमड़े का प्रत्यक्ष उपयोग न कर हम हरएक मरी हुई गायके पीछे कमसे-कम दस रुपये गॅवाते हैं। अन्ततः इस चमड़ेका उपयोग तो हम लोग ही करते है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २७-९-१९२५
 

१३७. पत्र : बिशननाथको

२७ सितम्बर, १९२५

प्रिय भाई,

आपने मुझे यह तो नहीं बताया कि आप खादी मण्डल क्यों छोड़ रहे हैं और खादीमें आपकी रुचि या आस्था कम होती जा रही है। ईमानदारीके साथ सवेतन राष्ट्रकी सेवा करनेमें मुझे तो कोई बुराई दिखाई नहीं देती।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

लाला बिशननाथ
पंजाब खद्दर बोर्ड
पुरी
लाहौर

अंग्रेजी पत्र (जी॰ एन॰ ७९४२) की फोटो-नकलसे।