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पत्र : घनश्याम बिड़लाको

ठीक बताना। मैं पिता भी हूँ और माँ भी हूँ। बेटी यदि सब कुछ माँसे न कहेगी तो किससे कहेगी? ट्रेनके हिलनेके कारण अधिक नहीं लिख सकता।

बापूके आशीर्वाद

१५ तक बिहार,
२० को बम्बई,
२१ से ३ नवम्बरतक कच्छ,
बादमें आश्रम।

गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ ९२१९ तथा सी॰ डब्ल्यू॰ ४६८) की फोटो-नकलसे।

 

१४०. पत्र : घनश्यामदास बिड़लाको

पटना
आश्विन सुदी १०
[२७ सितम्बर, १९२५][१]

भाईश्री ५ घनश्यामदासजी,

आपका पत्र मौला। लोहानीके बारेमें आपको विशेष तकलीफ इस समय तो नहिं दूंगा।

जमनालालजी मुझे कहते थे कि जो २५,००० रुपये आपने मुस्लिम युनिवरसिटीको दीये वह जो ६०,००० जुहुमें देनेकी प्रतिज्ञा की थी उसीमें के थे। मेरी समझ ऐसी थी और मैंने ६०,००० दूसरे कामोंमें खर्चनेका इरादा रखा था। परंतु यदि आपकी समझ ऐसी न थी कि मुस्लिम युनिवरसिटीके रूपैये अलग न माना जाय तो मुझे कुछ कहना नहिं है।

दूसरी बात यह है। गोरक्षाके बारेमें मेरे ख्याल आप जानते हैं। श्री मधुसूदन दासकी एक टेनरी कटकमें है। उसकी उन्होंने कम्पनी बनाई है। उसमें ज्यादा शेरले कर प्रजाके लीये गोरक्षाके कारण कब्जा लेनेका दील चाहता है। उसपर रू॰ १,२०,००० का कर्ज होगा। उस कर्जेमें से उसकी मुक्ति आवश्यक है। टेनरीमें चमड़े केवल मृत जानवरोंके लीये जाते हैं परंतु पाटलाघोंको मरवाकर भी उसके चमड़े लेते हैं। यदि टेनरी लें तो तीन शर्त होनी चाहिए।

  1. मृत जानवरका हि चमड़ा खरीदा जाय।
  2. पाटलाघोंको मरवाकर उसका चमड़ा लेनेका काम बंध कीया जावे।
  3. सूत[२] लेनेकी बात हि छोड़ दी जावे यदि कुछ लाभ मीले तो टेनरीका विस्तार बड़ानेके हि लीये उसका उपयोग कीया जावे।
     
  1. पत्रमें बिहारके दौरेके उल्लेखसे पता चलता है कि यह पत्र इसी वर्ष लिखा गया था।‌ गांधीजीने अपना बिहारका दौरा १५ अक्तूबर १९२५ को समाप्त किया था।
  2. यह सूद होना चाहिए।

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