पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

१. भेंट : 'इंग्लिशमैन' के प्रतिनिधिसे

[१ अगस्त, १९२५से पूर्व]

'इंग्लिशमैन' के प्रतिनिधिके पूछनेपर श्री गांधीने कहा कि मैं नहीं जानता कि लॉर्ड लिटन और देशबन्धु दासके बीच जो वार्ता चल रही थी, उसे समझौता-वार्ता समझना ठीक है या नहीं। इतना ठीक है कि एक मध्यस्थके माध्यमसे दोनोंके बीच कुछ वार्ता चल अवश्य रही थी। उस वार्ताके विषय क्या थे, इसकी मुझे कोई ठीक, वास्तविक और पुष्ट कर सकने योग्य जानकारी नहीं है। अलबत्ता, शायद मोटे तौरपर मैं उसके रुझानसे वाकिफ था, मगर उसे जाहिर करना लाभदायक और उचित नहीं है।

श्री गांधीने यह भी कहा कि पण्डित मोतीलाल नेहरूने स्वीकृति और हस्ताक्षरके लिए कोई पत्र मुझे नहीं भेजा है।

[अंग्रेजीसे]
इंग्लिशमैन, १-८-१९२५

२. पत्र: रेवरेंड ऑलवुडको

१४८, रसा रोड
कलकत्ता
१ अगस्त, १९२५

प्रिय मित्र,

मुझे आपके साथ मुलाकात और थोड़ी देर बातचीत करके सचमुच बड़ा आनन्द हुआ था। आपका पत्र पाकर भी मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। वहाँ बैठकमें मैंने जो-कुछ कहा था, वह मेरे हालके अनुभवोंपर आधारित था।

की मैं जानता हूँ कि विभिन्न धर्मोके प्रति अधिक उदार तथा सच्चा दृष्टिकोण रखनेवाले व्यक्तियोंकी संख्या बढ़ती जा रही है। उस बैठकमें[१] जिस सहिष्णुताके साथ मेरा भाषण सुना गया, वह इसका प्रमाण है। किन्तु जेलमें कुछ अपरिचित मित्रों द्वारा मुझे जो साहित्य भेजा गया था और लगभग प्रति मास देश और विदेशके ईसाई मित्रोंसे मुझे जो पत्र प्राप्त होते रहते थे, वे मेरे कथनकी सचाईको प्रदर्शित करते हैं। जहाँतक पादरी हैबरके प्रार्थना-गीतका[२] सम्बन्ध है, आप शायद यह स्वीकार करेंगे कि किसी व्यक्तिका अपनेको अधम और अपवित्र समझना एक बात है, किन्तु संसार द्वारा उसे वैसा घोषित किया जाना दूसरी बात है।. . .आगस्टीन अपनेको सबसे बड़ा पापी समझते थे, किन्तु संसार उन्हें सन्त कहता है। मैं कितना बड़ा

  1. देखिए खण्ड २७, पृष्ठ ४४९–५५।
  2. देखिए खण्ड १३, पृष्ठ ३७९।

२८–१