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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हैं, आज मैं इस सम्बन्धमें दो चार शब्द कहना चाहूँगा। यह विषय मुझे प्रिय है और मैं उसकी कुछ जानकारी होनेका दावा भी करता हूँ। यदि नगरपालिकाके पार्षद और नागरिक सच्चे मनसे नगरके सुधारकी ओर ध्यान दें तो वे देशकी बहुत बड़ी सेवा करेंगे। ऐसा करना बहुत जरूरी है क्योंकि शहरके जीवनकी छाप गांवोंपर असंदिग्ध रूपसे पड़ती है। यदि शहरमें गन्दगी हो तो उसकी गन्दगीकी झलक गाँवोंमें भी दिखाई देती है। यदि शहरोंमें सिनेमा होंगे तो कुछ हदतक गांवके जीवनपर भी उनका असर पड़ेगा। शहरों और गांवोंके इस पारस्परिक सम्बन्धको बंगालमें मैंने स्वयं देखा है और ग्रामवासियोंको शहरके लोगोंके बारेमें जो शिकायतें हैं, वे मुझे अच्छी तरह याद हैं। शहरके निवासियोंपर अपने शहरोंको शुद्ध और अपनी गलियों को साफ-सुथरा रखने की जिम्मेदारी तो है ही, इसके सिवा अपने ग्रामवासी भाइयोंके प्रति भी उनका कुछ कर्तव्य है। वह कर्तव्य कितना ही मामूली क्यों न हो, पर एक तरहसे वह आपको गाँवोंका संरक्षक बना देता है। जैसा व्यवहार आप नगरनिवासी करेंगे वैसा ही व्यवहार गाँवोंके लोग भी करेंगे। सबसे बुरी बात तो यह है कि आपके आस-पास एकत्र मलिनताकी तरह आपके आन्तरिक जीवनमें भी मलिनता भरती जा रही है। पटनामें ज्यादा सड़कें नहीं है पर जब मैंने उनकी हालत देखी तो मुझे असीम दुःख हुआ, उतना ही जितना कि आपके आन्तरिक जीवनका ह्रास देख कर हुआ। आपके नागरिक कर्तव्योंके बारेमें मैं इसी प्रसंगमें कुछ सवाल आपसे पूछना चाहता हूँ। क्या आप अपने नगरकी सफाईका समुचित ध्यान रखते हैं या इस कामको पूरी तरह भंगियोंपर छोड़ देते हैं? बच्चोंके लिए शुद्ध और सस्ता दूध मिल सके इसके लिए आपने क्या प्रबन्ध किया है? क्या यहाँके स्त्री-पुरुष इतने गन्दे हैं कि दूसरे लोग भी उनसे गन्दा बनना ही सीखेंगे? क्या आपने अपने अस्पृश्य भाइयोंके लिए कुछ किया है? और अन्तिम प्रश्न है, क्या आपके यहाँ शराबकी दुकानें हैं? अगर हैं तो कितनी हैं? मैं जानता हूँ कि ऐसी दुकानोंको संख्या और उनका होना न होना आपके वशमें नहीं है। बहुत-कुछ तो सरकारपर निर्भर है। पर इसे पूरी तरहसे सरकारका दोष भी नहीं माना जा सकता। यदि आप स्वयं इस विषयमें जाग्रत हों, शराब पीनेवालोंको इस दुर्व्यसनकी बुराइयोंके बारेमें समझायें, उन्हें उसके बदले में पीने को कुछ और दें तो वे लोग शराबकी दुकानोंमें जानेका आग्रह क्यों करेंगे? ये सब प्रश्न ऐसे हैं जिनपर कर-दाताओंको ध्यान देनेकी जरूरत है। यदि आप ऐसा करें तो फिरसे आपके शहर पहलेकी तरह स्वच्छ और सुन्दर हो जायेंगे।

पश्चिमी सभ्यताकी मैंने अक्सर कड़ी आलोचना की है। आज भी मेरे विचार वही हैं और आज भी मैं उनपर दृढ़ हूँ। पर मैं अच्छे-बुरेको पहचानता हूँ और बुरी चीजोंमें भी जो अच्छाइयाँ हैं उन्हें स्वीकार करता हूँ। पश्चिमी देशोंने नागरिक जीवनको सुधारनेको दिशामें बहुत प्रगति की है। पश्चिमी देशोंमें, विशेषतया इंग्लैंड और अमेरिकामे, अधिकांश लोग शहरोंमें रहते हैं क्योंकि वे खेती-बारी नहीं करते