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भाषण : पटनाकी सार्वजनिक सभामें

बल्कि औद्योगिक संस्थानोंमें काम करते हैं। शहरों को साफ रखने और सभ्य जीवनके लिए नितान्त आवश्यक सुख-सुविधाओंका प्रबन्ध करने में पश्चिमके लोग हमारे सामने एक अनुकरणीय उदाहरण पेश करते हैं। यह सही है कि शराब पश्चिमी जीवनका एक अंग ही बन गई है। पर इन्हीं पश्चिमके लोगोंने किस तरह महामारियोंका उन्मूलन किया है वह भी देखने लायक है। उन्होंने डटकर उसका मुकाबला किया, उसका बढ़ना रोका और अन्तमें जड़से उसका सफाया ही कर डाला। इसके विपरीत, भारतमें हम देखते हैं कि यहाँ लोग समस्याके प्रति सर्वथा उदासीन हैं। मेरा आपसे अनुरोध है कि नगरके निवासी होनेके नाते आपके जो पवित्र कर्तव्य हैं उन्हें आप कभी न भूलें, उनपर गम्भीरतापूर्वक विचार करें, और यथाशक्ति उनका पालन करें।

अन्त्यजों की समस्याका उल्लेख करते हुए महात्माजीने कहा कि मुझे प्रसन्नता है कि आपने अपने मानपत्रमें अपनी भूल निःसंकोच स्वीकार कर ली हैं।[१] पर भूल स्वीकार करनेका लाभ तभी हो सकता है जब आप उसे सुधारनेका प्रयत्न करें। जबतक आप अपने अन्त्यज भाइयोंके जीवन में प्रवेश करके उनपर पड़नेवाली कठिनाइयोंको दूर नहीं करते, उनकी सेवा नहीं करते तबतक आप अपने पवित्र कर्तव्यका पालन नहीं करते। यह कहना कि हम हिन्दू हैं और दया-धर्म में विश्वास करते हैं, और साथ ही अछूतोंको पास न फटकने देना परस्पर विरोधी बातें हैं। यदि आप कहें कि आपके धर्ममें हिंसाको शिक्षा दी गई है तो मुझे आपसे कुछ नहीं कहना है। किन्तु यदि आप यह मानते हों कि अहिंसा हमारे धर्मका एक बुनियादी मुख्य सिद्धान्त है तो अस्पृश्यताका कलंक माथेपर लगाये हुए आप संसारको अपना मुंह नहीं दिखा सकते।

इसके बाद महात्माजीने कहा कि यदि आप उस गन्दगीको गाँवोंसे सचमुच दूर करना चाहते हैं जिसे आप वहाँ फैलाते रहे हैं तो आप देशमें व्याप्त घोर गरीबीको याद किये बिना नहीं रह सकते, और उसके साथ ही इस गरीबीको दूर करनेका एकमात्र सम्भव उपाय हमारे सामने आ जाता है, अर्थात् कताई और चरखा। आप नगर-निवासियोंसे मेरी यही प्रार्थना है कि आप इस बातको समझें कि यदि आप गाँवोंको साफ-सुथरा नहीं बना सकते तो कमसे-कम उनकी गरीबी दूर करने में तो अपना सहयोग अवश्य दें। यदि आप गाँवों में हमारी बहनों द्वारा काते गये सूतसे बने कपड़ोंको मोटा-झोटा मानकर उसका तिरस्कार करेंगे और मिलका कपड़ा खरीदकर इन बहनोंकी गरीबी और बढ़ायेंगे तो ईश्वर आपको कभी क्षमा नहीं करेगा। मुझे यह जानकर दुःख हुआ है कि नगरका खादी भण्डार प्रतिमास केवल २,००० रुपयोंका खद्दर बेच पाता है और उसके पास कोई दो लाख रुपयेका माल पड़ा हुआ है।

 
  1. मानपत्रमें कहा गया था. . .'आपके प्रिय कार्य—अन्त्यजों और दलित वर्गके उत्थान—के विषयमें कुछ विशेष प्रयत्न नहीं किया गया है। अछूतों के लिए दो स्कूल जरूर चलाये जा रहे है और दूसरे स्कूलोंमें भी उनके प्रवेश पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है।'