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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जो यह कहते हैं कि बाहरसे मेंगाया हुआ तथा भारतीय मिलोंका कपड़ा खद्दरसे सस्ता है वे खद्दरके सही उद्देश्य और महत्त्वको नहीं समझते। आपको यह याद रखना चाहिए कि खद्दरके लिए आप जो कुछ दाम देते हैं वह आपके गरीब देशवासियोंकी जेबमें जाता है। परन्तु जो कपड़ा मिलों में बनता है उसके मूल्यका एक अल्पांश ही उन्हें प्राप्त होता है। अपने निर्धन देशभाइयोंके प्रति आपका कर्त्तव्य सर्वोपरि है और किसी दूसरी बातका विचार आपको उसके बाद ही करना है। अगर आप इन गरीबोंको भूखा रखते हैं और मुझे स्वर्णजड़ित मानपत्र भेंट करते हैं तो वह मुझे कैसे पसन्द आ सकता है।

इसके बाद महात्माजीने कहा कि मैंने जानबूझकर हिन्दू-मुस्लिम एकताके विषयमें कुछ नहीं कहा, क्योंकि मैं मानता हूँ कि हिन्दू और मुसलमान दोनोंका दिमाग खराब हो गया है। भला पागलोंको शिक्षा देनेका क्या लाभ है? पर यदि आपने उन सब बातोंपर विचार किया जिनके बारेमें मैंने आपसे अभी बातकी है तो मझे ऐसा नहीं लगेगा कि मेरा यहाँ आना व्यर्थ गया।

अन्तमें गांधीजीने उपस्थित लोगोंसे देशबन्धु स्मारक कोषमें चन्दा देनेकी अपील की और कहा कि यह कोष स्वर्गीय नेताके प्रिय कार्य, गाँवोंके पुननिर्माणपर खर्च किया जायेगा।

[अंग्रेजीसे]
'सर्चलाइट, ७–१०–१९२५
 

१४८. पत्र : जवाहरलाल नेहरूको

३० सितम्बर, १९२५

प्रिय जवाहरलाल,

हम विचित्र समयमें रह रहे हैं। शीतलसहाय अपना बचाव कर सकते हैं। कृपया आगेकी घटनाओंसे मुझे परिचित रखना। वे क्या करते हैं? क्या वे वकील हैं? क्या उनका कभी क्रान्तिकारी गतिविधियोंसे कोई सम्बन्ध रहा है?

कांग्रेसकी बात यह है कि उसे जितना सादा बना दिया जाये उतना अच्छा है, ताकि जो कार्यकर्त्ता अब रह गये है वे उसे सँभाल सकें। मैं जानता हूँ, तुम्हारा बोझ अब बढ़ेगा। परन्तु तुम्हें अपने स्वास्थ्यको किसी भी तरह खतरेमें नहीं डालना चाहिए। मुझे तुम्हारे स्वास्थ्यकी चिन्ता है। तुम्हें जो बार-बार बुखार आ जाता है, वह मुझे बिलकुल पसन्द नहीं है। काश तुम खुद और कमला थोड़ी छूट्टी ले सकते!

पिताजीका[१] मेरे पास खत आया है। बेशक जहाँतक उनका खयाल है, उतनी दूर मैं कभी भी नहीं जाना चाहता था। किसीसे पिताजीको आर्थिक सहायता देने के

  1. पण्डित मोतीलाल नेहरू।