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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सहल कर दिया है। यह दो हजार गज सूत यदि हम पाँच-छः अंकका भी मान लें तो भी उसमें आधा सेर रुई नहीं लगेगी। इसलिए इतनी रुईकी कीमत तो चार आनेसे भी कम ही होगी और यदि बारीक काता जाये तो मुश्किलसे दो आने लगेंगे। सदस्य इस रुईकी कीमतके अलावा जो कुछ देना चाहेगा वह तो चरखेके प्रति उसकी पत्र पुष्प-जैसी भेंट होगी। और फिलहाल तो मण्डल इसका स्वागत करेगा। इसलिए तुम देखोगे कि यह तो तुम्हारी इच्छाके अनुरूप ही हुआ है।

अब खादीके उत्पादन और बिक्रीकी तुमने जो चर्चा की है, उसपर विचार करें।

बिक्रीके सम्बन्धमें तो पुराने मण्डलकी कार्यपद्धति साफ है। जो व्यापारीवर्ग खादी बेचता है उसे तो वह अच्छी जमानत लेकर बिना ब्याजके रकम देता है। लोगोंके खादी प्रेमका अनुचित लाभ उठानेके लिए कहीं वह महँगी खादी न बेचे इसके लिए लाभकी सीमा सवा छः प्रतिशत निर्धारित की गई है। खोट होनेपर वह २ प्रतिशत आर्थिक सहायता देने की बातको स्वीकार करता है। इस तरह व्यापारी वर्ग धीरे-धीरे अपने पैरोंपर खड़ा हो जायेगा और इस तरह मण्डलका दायित्व भी कम हो जायेगा। इस तरह तुम देखोगे कि इस पद्धतिमें व्यावसायिक दृष्टि कम है; और इससे व्यापारीको पूँजीका लाभ भी मिलता है, तथा किसीको कुछ कहनेकी गुंजाइश नहीं रहती।

अब रहा उत्पादनका प्रश्न। इसके अन्तर्गत स्कूलोंमें शिक्षणके अलावा लोगोंसे कताने और उन्हें खादी पहनानेका जो काम है वह तो होना ही चाहिए। लेकिन उसका परिणाम लम्बे अर्से के बाद ही देखा जा सकेगा। इसलिए इतनेसे ही सन्तोष मानना ठीक नहीं होगा। जैसे-जैसे मैं विचार करता है, वैसे-वैसे देखता है कि हम अभी उन क्षेत्रोंमें नहीं पहुँच सके हैं जहाँ चरखा चलाना स्वाभाविक और सस्ता है। ऐसे क्षेत्रोंमें अच्छे कारीगरोंको उचित मंजूरी देकर काम चलाया जाता है। यदि उक्त क्षेत्रोंमें कहीं कोई छोटी-मोटी त्रुटि हो तो उसे दूर करनेके लिए हम खादीके अर्थशास्त्र तथा उसके धन्धेमें कुशल व्यक्तियोंको वेतन देकर उन्हें वहाँ भेजें तो कामको आसानीसे व्यवस्थित ढंगसे चलाया जा सकता है। इसमें यदि हम पूरी सावधानी नहीं रखते तो वह हमारी अदूरदर्शिताका परिचायक होगा। इसलिए मैं खादी उद्योग और उसकी कलाके विशेषज्ञोंको वेतन देकर रखने की आवश्यकता महसूस करता हूँ और मुझे यह भी लगता है कि हमें ऐसे असंख्य व्यक्तियोंकी आवश्यकता है। लेकिन हमारे पास शिक्षित व्यक्ति नहीं है। अतएव हमें ऐसे कार्यके प्रति प्रेमभाव दिखानेवाले व्यक्तियोंको जुटा कर उन्हें शिक्षित करनेका काम अपने हाथमें लेना चाहिए। मैंने यह भी महसूस किया है कि थोड़ा-बहुत सीखे हुए व्यक्तियोंसे भी इसमें काम नहीं चल सकता; इसलिए उन्हें पूरी-पूरी शिक्षा देना भी महत्त्वपूर्ण है। इसके लिए हमें एकाधिक ऐसे केन्द्रोंकी जरूरत पड़ेगी, जहाँ खादीकी सर्वांग शिक्षा दी जा सके।

इस तरह जिन क्षेत्रोंमें कुछ आसार दिखाई पड़ते हैं, लेकिन जो सुषुप्त है और मंथर गतिसे चल रहे है उन्हें यदि हम सप्राण बनानेकी कोशिश करेंगे तो इसके साथ ही कठिन दिखाई पड़नेवाले क्षेत्रोंपर भी हमें मेहनत करनी पड़ेगी। एक अवधि