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पत्र : सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूजको

तक बुनकरोंको भी हमें अपने साथ लेकर चलना चाहिए; नहीं तो उसमें अनेक प्रकारकी धोखाधड़ी और मंदी आते रहनेका भय बना रहेगा और इससे हमारे कियेघरेपर पानी ही पड़ सकता है। यह सब करनेके लिए मुझे तो लगता है कि हमें कुशल, चुस्त और नीतिवान कार्यकर्त्ताओंकी एक सेना ही आवश्यक होगी। इसमें जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए। व्यक्तियोंके चुनावमें सावधानी बरती जानी चाहिए। इसमें किफायत भी पूरी करनी होगी। लेकिन मुझे विश्वास है कि यदि यह सब-कुछ जाग्रत रहकर करें तो मुश्किल नहीं है। केन्द्र जैसे-जैसे ढर्रेपर आ जायेंगे वैसे-वैसे वे कार्यकर्त्ताओंके खर्चको भी उठाने लगेंगे। इस बारेमें मुझे तनिक भी शंका नहीं है। आज भी कुछ हदतक ऐसा देख रहा हूँ।

इनके अलावा अनेक ऐसी बातें हैं जो मैं तुम्हें समझाना चाहता हूँ; लेकिन वह फिर कभी। इतना याद रखना है कि अकालके लिए भी खादी तैयार करनी होगी। एक भी स्त्री जो पैसेके लिए कातना चाहे उसे हम काम देनेसे न चूकें। इसलिए मकान आदिकी जरूरत होगी।

बापूके वन्देमातरम्

ल गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ ५७२७) की फोटो-नकलसे।

 

१५०. पत्र : सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूजको

सितम्बर, अक्तूबर, १९२५]

प्रिय चार्ली,

तुम नहीं चाहते कि मैं तुम्हें लिखू; पर मुझसे रहा नहीं जाता।

गुरुदेव तुम्हें क्यों बुलाना चाहते हैं? ईश्वरने तुम्हें अबतक अनिष्टसे बचाया है। और जबतक उसे तुमसे काम लेना है, आगे भी बचायेगा। पर तुम जहाँ उसकी सहायता कर सकते हो या जहाँ तुम्हें उसकी सहायता करनी चाहिए वहाँ भी तुम वैसा नहीं करते। तुम्हारा किसी बात या व्यक्तिके बारेमें परेशान होना ठीक नहीं है। तुम्हें किसी बातके लिए चिन्तित देखता हूँ तो मैं सोचने लगता हूँ कि [बाइबिलके इस आदेशका] 'किसीकी चिन्ता मत करो' आखिर क्या अर्थ है।

तुम्हारा जमशेदपुरका विवरण[१] बहुत बढ़िया है। तुम्हारे सिवा और कोई इतना अच्छा नहीं लिख पाता। तुमने बहुत स्पष्ट ढंगसे असली बात सामने रख दी है।

भीलोंके बच्चोंको लँगोटी पहनने देनेके विषयमें मैं तुमसे पूरा सहमत हूँ।

सस्नेह

तुम्हारा,
मोहन

  1. तात्पर्य टाटा इस्पात कारखानेके मालिक-मजदूर झगड़ेसे सम्बन्धित विवरण से है‌।