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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इतना ही नहीं, मैं तो यह मानता हूँ कि यह परिवर्तन उन लोगोंकी आवश्यकताके अनुकूल है, जिनकी अबतक कांग्रेससे एकरूपता मानी जाती रही है। सम्भव है वे इसे पर्याप्त न मानें। यदि उनके लिए यह अपर्याप्त रहा तो मुझे सचमुच इसका दुःख होगा।

बैठकमें हुई बहससे प्रकट होता था कि कुछ सदस्योंके मनमें चन्देके रूपमें दिये जानेवाले सूतको सीधे अखिल भारतीय चरखा संघको भेजनेसे बेईमान लोगों द्वारा फेशेवर कतैयोंका शोषण या उससे भी बदतर बात हो सकनेकी आशंका है। यहाँतक कि बेईमानीके तरीकोंसे कांग्रेसमें कातनेवाले सदस्योंकी भरमार करा दी जा सकती है। इस तरह एक बहुत अवांछनीय स्थिति पैदा हो जायेगी और जिस उद्देश्यसे यह प्रस्ताव किया गया है, वह उद्देश्य ही विफल हो जायेगा। सूत केन्द्र में जमा किया जाये तब वे ऐसा कोई भय नहीं मानते थे। लेकिन अगर वह प्रान्तीय शाखाओंको भेजा जाये तो उन्हें ऐसी अवांछनीय परिस्थिति उत्पन्न होनेका पूरा भय था। इस आपत्तिका निवारण करने में कोई कठिनाई नहीं हुई। इसके लिए संघके संविधानमें इस आशयको एक धारा जोड़ दी गई कि कांग्रेसके जो सदस्य चन्देमें चवन्नीके बजाय सुत ही देना चाहें वे अपना सूत सीधे केन्द्रीय कार्यालयोंको भेजें। खुद मेरा विचार ऐसा कदापि नहीं है कि कांग्रेसको सूत कातनेवालोसे भर दें, और इस तरह उसको फिर विशुद्ध रूपसे या मख्यतः कतैयोंकी संस्था बना दें और उसमें कौंसिल-सम्बन्धी नीतियोंके लिए कोई स्थान ही न रहने दूं। वैसे मैं इसे कतैयोंकी संस्था बनाना तो जरूर चाहूँगा, लेकिन यह उसी हालतमें हो सकता है जबकि वे लोग, जिनको आज सत्ता दी गई है, सोलहों आने चरखेके कायल हो जायें। और यह तो चरखा चलानेवालों द्वारा कांग्रेसके अन्दर नहीं बल्कि बाहर रहकर किये गये कार्यके जरिये ही हो सकता है। यदि हाथकताईमें सचमुच कोई अपनी शक्ति है और अगर उसका प्रचार इतना व्यापक हो जाये जिससे एक समयके भीतर, विदेशी वस्त्रोंका बहिष्कार सम्भव हो जाये तो स्वराज्यवादी पूरी तरह चरखेकी शक्तिके कायल होकर उसके हामी बन जायेंगे। किन्तु चरखेका ऐसा व्यापक तथा प्रभावकारी प्रचार तो तभी हो सकता है, जब चरखेकी शक्तिमें पूरा विश्वास रखनेवाले लोग निरन्तर सिर्फ इसी ओर प्रयत्न करते रहें और अपने विश्वासको कार्यरूप देते रहें। इसलिए मेरी पक्की सलाह है कि जो लोग इस समय कताईके आधारपर कांग्रेसके सदस्य बने हुए हैं वे यदि चाहें तो प्रधान कार्यालयको अपना सूत भेजते रहकर ऐसे सदस्य बने रहें। कांग्रेसके कातनेवाले सदस्योंकी संख्यामें वृद्धि करनेके लिए उन्हें प्रचार करनेकी कोई आवश्यकता नहीं है। वे कताई संघके सदस्योंकी संख्या बढ़ाते चले जानेके लिए पूरी शक्तिसे काम कर सकते हैं। और यदि हमें एक बड़ी तादादमें स्वेच्छासे कातनेवाले ऐसे लोग मिल जायें जो पेशेवर कतैये नहीं बल्कि यज्ञकी भावनासे—न कि जीविकाके लिए—कातनेको तैयार हों तो यह उपलब्धि जल्दी ही अपना प्रभाव दिखाये बिना नहीं रहेगी। परन्तु फिलहाल, जबतक कि सब तरहकी आशंकाएँ दूर नहीं हो जातीं, उन्हें कांग्रेसके सदस्य नहीं बनना चाहिए। मेरी सदासे यह राय रही है कि राष्ट्रीय कांग्रेसमें आपसी झगड़े