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अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी

नहीं होने चाहिए और न कांग्रेसपर कब्जा करने के लिए कोई अशोभन प्रयत्न ही होना चाहिए। जो लोग बहुमतकी नीतिसे सहमत नहीं हो सकते, वे या तो महत्त्वपूर्ण बातोंमें इस हदतक न लड़ें कि मत-विभाजनकी नौबत आ जाये, या यदि उनकी अन्तरात्मा उनके ऐसा रुख अपनानेमें बाधक हो तो वे कुछ समयके लिए कांग्रेससे बिलकुल अलग हो जायें। इसलिए जो उग्र असहयोगी कांग्रेसमें रहनेपर हर कदम पर, हर अवस्थामें स्वराज्यवादियोंसे लड़ना अपना कर्तव्य समझते हों, उनसे मेरा आग्रह है कि वे कांग्रेससे अलग हो जायें और यदि वे चाहें तो बाहर रहकर लोकमत तैयार करें। उन्हें स्वराज्यवादियोंके लिए खुला मैदान छोड़ देना चाहिए और उन्हें अपनी नीतिको कार्यान्वित करनेका पूरा मौका देना चाहिए। यदि स्वराज्यवादियोंको कुछ असर सरकारपर डालना है तो मेरी राययें कांग्रेस पूरी तरहसे उनके अधिकारमें रहनी चाहिए और असहयोगियोंको उनके काममें कोई विघ्न-बाधा नहीं डालनी चाहिए।

इसलिए मेरी रायमें जहाँ कहीं दोनों दलोंके लोगोंकी संख्या बराबर-बराबर हो, वहाँ असहयोगियों अथवा अपरिवर्तनवादियोंको चाहिए कि वे पूरा अधिकार स्वराज्यवादियोंको दे दें और यदि वे स्वयं किन्हीं पदोंपर हों तो उन्हें छोड़ दें। जहाँ अपरिवर्तनवादियोंका भारी बहुमत हो वहाँ वे स्वराज्यवादियोंके काममें रुकावट न डालें और अपनी अन्तरात्माके अनुकूल, जहाँ बन पड़े, वहाँ उनकी सहायता करें। कोई भी कांग्रेस कमेटी किसी भी हालतमें कौंसिलोंके लिए ऐसा उम्मीदवार खड़ा न करे जिसे स्वराज्यवादियोंने पसन्द न किया हो और उनके पसन्द किये गये उम्मीदवारके मुकाबले भी किसीको खड़ा न करे।

यहाँ मैं एक बातका उल्लेख किये बिना नहीं रह सकता। वह सचमुच बहुत खुशीकी बात है। मैंने देखा कि अधिकांश सदस्योंकी सम्मति निश्चित रूपसे इस बातके पक्षमें थी कि सभी कांग्रेसियोंके लिए खादीको राष्ट्रीय पहनावा बना दिया जाये। उस आशयका प्रस्ताव सिर्फ इसीलिए पास नहीं किया गया कि इससे स्वराज्यवादी दलको परेशानी होगी। बेलगाँवके प्रस्तावमें इतना सुधार तो सब लोगोंने खुशी-खुशी कबूल कर लिया कि यद्यपि कांग्रेसके समारोहों तथा दूसरे सार्वजनिक अवसरोंपर ही खादी पहनना लाजिम है, किन्तु सभी कांग्रेसियोंसे यह उम्मीद की जाती है कि वे तमाम अवसरोंपर खादी पहनेंगे और विदेशी कपड़ेको तो किसी भी हालतमें नहीं पहनेंगे; और न उसका अन्य उपयोग ही करेंगे

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १–१०–१९२५