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१५४. अखिल भारतीय चरखा संघ

इसी अंक में अन्यत्र अखिल भारतीय चरखा संघका विधान[१] प्रकाशित किया गया है। इसे ध्यानसे पढनेपर पाठकगण देखेंगे कि अभी यह संस्था लोकतान्त्रिक नहीं है इतना ही नहीं, ठीक देखें तो इसके विपरीत एक ही व्यक्ति इसका सर्वेसर्वा है। इसे जहाँ एक ओर संस्थाकी स्थापना करनेवाले व्यक्तिकी अहम्मन्यताका द्योतक माना जाता है, वहाँ दूसरी ओर उस व्यक्तिके अपने हेतु और स्वयं अपने-आपमें अट विश्वासका भी सुचक माना जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति जहाँतक अपने-आपको जान सकता है, वहाँतक किसी संस्थाको एकतान्त्रिक रूप दे तो मेरी समझमें यह कोई अहम्मन्यता नहीं है। व्यापारिक संस्थाएँ लोकतान्त्रिक हो ही नहीं सकतीं। और अगर हाथ-कताईको इस देशमें घर-घर प्रवेश पाना है और सफल होना है तो इसके गैरराजनीतिक और विशुद्ध आर्थिक पक्षका पूरा-पूरा विकास करना आवश्यक है। यह पूर्ण विकास ही अखिल भारतीय चरखा संघका उद्देश्य है।

संघमें अपने सहयोगियोंको चुनते समय मैंने सिर्फ उपयोगिताको ही विचारणीय माना है। उनमें से हरएकको उसकी अपनी विशिष्ट योग्यताके कारण ही लिया गया है। इसमें सभी विभिन्न प्रान्तोंको प्रतिनिधित्व देने का कोई सवाल नहीं था। गलतफहमी न हो जाये, इस आशंकासे कुछ बहत ही अच्छे कार्यकर्त्ताओंको भी परिषदमें नहीं लिया गया। पूछा जा सकता है कि कातनेकी दृष्टिसे मौलाना शौकत अलीमें कौन-सी विशिष्ट योग्यता है। उनकी विशिष्ट योग्यता यही है कि वे मुसलमान हैं, खादीमें पक्का विश्वास रखते है, हर महीने हजार गज सूत कातते हैं तथा खादी और चरखेके लिए और जो-कुछ कर सकते है, करना चाहते हैं। मैंने स्वराज्य दलके सक्रिय सदस्योंको इसमें जानबूझ कर नहीं लिया है। इसका कारण स्पष्ट है—वे अपना समय मुख्य रूपसे खादीके ही काममें नहीं लगा सकते।

संघके गठनके समय स्वराज्यवादियोंको मिलाकर सौ से अधिक खादीप्रेमी उपस्थित थे और वे संघके निर्माणमें मुझे सलाह देकर सहायता पहुँचा रहे थे। उस समय मुझसे किसीने यह भी पूछा कि क्या अब मैं खादीके राजनीतिक महत्त्व या सत्याग्रहके अनुकुल वातावरण तैयार करनेकी उसकी क्षमतामें विश्वास नहीं करता। स्पष्ट शब्दों में मैंने इस आशंकाको निर्मूल बताया और कहा कि खादीका राजनीतिक महत्त्व तो उसकी आर्थिक क्षमतामें निहित है। जो जाति रोजगारके अभावमें भूखों मर रही हो, उसमें किसी प्रकारकी राजनीतिक जागरूकता हो ही नहीं सकती। जिस देशमें कपड़ेकी जरूरत न हो और जहाँके लोग शिकारपर गुजारा करते हों या जिस देशके लोग दूसरे देशोंकी जनताके शोषणपर जी रहे हों, वहाँ खादीका कोई महत्त्व नहीं होगा। भारतको विशिष्ट परिस्थिति खादीको जो राजनीतिक महत्त्व प्रदान करती है वह

  1. देखिए "अखिल भारतीय चरखा संघका संविधान",२४–९–१९२५।