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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

विशिष्टता इस बातमें है कि इस देशको कपड़े की जरूरत है, यह किसी दूसरे देशका शोषण नहीं करता, और यहाँके करोड़ों लोग यद्यपि भूखसे तड़प रहे हैं, फिर भी उनके पास वर्षमें चार महीने कोई काम नहीं होता। खादीकी सत्याग्रहके अनुकूल वातावरण तैयार करने की क्षमता इस बातमें निहित है कि अगर खादीका काम सफल हो जाये तो उससे हमें इस बातका एहसास हो सकता है कि हममें भी कुछ शक्ति है। इसके साथ-साथ वह शान्ति बनाये रखने के संकल्पका वातावरण भी तैयार कर सकती है। ऐसे बहुतसे-लोग हैं जो सत्याग्रहकी रट तो लगाये रहते हैं, किन्तु जिन्हें इसके अर्थका ज्ञान अभीतक नहीं हो पाया है। वे ऐसे गहरे संक्षोभके वातावरणको ही सत्याग्रहका पर्याय समझ लेते हैं, जिसमें बातकी बातमें सचमच ही हिंसाके भडक उठनेकी सम्भावना हो। किन्तु वास्तवमें सत्याग्रह इससे बिलकुल उलटी चीज है। खादी जबतक एक आर्थिक साधनके रूप में पूरी तरह सफल नहीं हो जाती तबतक न कोई राजनीतिक परिणाम निकल सकता है और न शान्त वातावरण तैयार हो सकता है। इसीलिए, इसके सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष, आर्थिक पक्षपर जोर देना आवश्यक है। आर्थिक पक्षसे खादीका सीधा सम्बन्ध भी है। इसलिए इसकी प्रस्तावनामें जो कुछ कहा गया, पूरी तरह सोच-समझकर कहा गया है; वह बहत महत्त्वपूर्ण है। उग्रसे-उग्र राजनीतिज्ञ और नबलसे-प्रबल सत्याग्रही भी संघमें शामिल हो सकता है, लेकिन उसका यों शामिल होना एक आर्थिक कार्यकर्ताके रूपमें ही होगा। अगर कोई महाराजा भी खादीके आर्थिक महत्त्वको स्वीकार करता हो और यह मानता हो कि भारतके करोड़ों क्षुधा-पीड़ित लोगोंके लिए कोई ठीक पूरक धन्धा ढूंढना अत्यन्त आवश्यक है तो वह भी इस संघमें शामिल हो सकता है। इसलिए जो लोग खादी और चरखेमें विश्वास रखते हैं मैं उन सबको-चाहे वे किसी भी राजनीतिक दल अथवा किसी भी धर्म या जातिके हों—संघमें शामिल होने के लिए आमन्त्रित करता हूँ। जिन अंग्रेजों और अन्य यूरोपीयोंको भारतके करोड़ों क्षुधा-पीड़ित लोगोंकी चिन्ता है, उन्हें भी मैं इस संघमें शरीक होनेको निमन्त्रित करना चाहूँगा। मैं जानता हूँ कि ऐसे बहुतसे लोग हैं जो खादीमें, हाथ-कताईमें विश्वास तो रखते हैं, किन्तु खुद कातनेको तैयार नहीं हैं। वे भी अगर केवल खादी पहननेके लिए तैयार हों तो शौकसे इस संघमें शामिल हो सकते हैं। फिर कुछ ऐसे लोग भी है जो किसी कारण-विशेषसे खादी पहननेको भी तैयार नहीं है, किन्तु यह जरूर चाहते हैं कि खादी हर तरहसे प्रगति करे। उनसे मैं यही कहूँगा कि आप लोग अनुदान देकर संघकी सहायता करें।

किन्तु, यह बात साफ-साफ समझ लेनी चाहिए कि जबतक कांग्रेस चाहेगी तबतक यह संघ उसका एक अभिन्न अंग बना रहेगा; और कांग्रेसके अभिन्न अंगके रूपमें संघका यह कर्तव्य होगा कि वह हाथ-कताई और खादी-विषयक कार्यक्रममें अपनी शक्ति-भर पूरी सहायता करे। इस प्रकार कांग्रेस और इस संघ दोनोंकी, उन्हें आपसमें जोड़नेवाली चीज चरखे और खादीमें आस्था है। कांग्रेसका एक अभिन्न अंग होनेके बावजूद यह संघ कांग्रेसकी बदलती हुई राजनीतिसे कोई सरोकार नहीं रखेगा और न उसमें परिवर्तन होनेपर किसी रूपमें अपने भीतर अनुरूप परिवर्तन करेगा। इसका अपना