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१५५. टिप्पणियाँ
क्षमा-प्रार्थना

बिहारकी अपनी शेष यात्राको मुल्तवी करने में मेरा भी हाथ रहा; मुझे इस बातका निहायत अफसोस है। पर मै लाचार था। मुझे लगा कि पिछले वर्षके उपवासके[१] बाद लगातार सफर करते रहने से मेरा स्वास्थ्य धीरे-धीरे गिरता जा रहा है। बुनियादी तौरपर मेरे स्वास्थ्यमें कोई खराबी नहीं जान पड़ती। थके हुए शरीरको सिर्फ कुछ आरामकी जरूरत है। बाब राजेन्द्र प्रसादने मेरे स्वास्थ्यकी यह हालत देखी। उन्होंने यह भी देखा कि हजारों लोगोंके जयजयकार और हर्षध्वनिको, फिर उसके पीछे कितना ही प्रेम-भाव क्यों न हो, सहन करनेकी शक्ति मुझमें नहीं है, इसलिए उन्होंने १५ अक्तूबरके बाद मुझे बिहार-यात्रासे मुक्त कर देना तय कर लिया है। और १५ अक्तूबर तकके लिए पहले जो कार्यक्रम निर्धारित था, उसे भी बदलकर इतना हलका कर दिया है कि अब हर रोज मुझे काफी आराम मिल जायेगा और सप्ताहमें दो दिन सम्पादनके लिए भी मिल जायेंगे। संयुक्त प्रान्तके मित्रोंने भी उतनी ही उदारता और कृपा दिखाई है; उस प्रान्तमें मेरे दो दिन रह जानेसे ही वे सन्तुष्ट हो जायेंगे। मैंने नवम्बरमें महाराष्ट्रके कुछ भागोंमें दौरेका वचन दिया था वहाँके खादी प्रेमियोंने भी मुझे उससे मुक्त कर दिया है। कच्छकी १५ दिनकी आरामसे कट जानेवाली यात्राके बाद अब मेरी इस सालकी यात्रा समाप्त हो जायेगी। कच्छके मित्रोंका आग्रह है कि मैं अक्तूबरमें ही कच्छ जाऊँ। पर उन्होंने वादा किया है कि कच्छकी यात्रामें कहीं भी शोरगुल न होगा और मुझे सब प्रकारसे आराम दिया जायेगा। उन्होंने मुझे खादी और चरखेके प्रचारके लिए एक मोटी रकम देनेका लालच भी दिया है। जिन सज्जनोंने मुझपर इतनी कृपा की, मेरा इतना खयाल किया, उन सबको मैं धन्यवाद देता हूँ। मैं उम्मीद करता हूँ कि कच्छके मित्र अपने वचनका पालन करेंगे। जिन प्रान्तोंने कृपा करके मुझे यात्रासे मुक्त कर दिया है, उनसे मैं वादा करता हूँ कि अगले साल यदि वे लोग चाहेंगे तो मैं वहाँ अवश्य आऊँगा। कानपुरमें सलाह करके हम कार्यक्रम तय कर लेंगे।

११ अक्तूबर याद रखें

मैं कांग्रेसकी संस्थाओं और दूसरी सार्वजनिक संस्थाओंका ध्यान अ॰ भा॰ कां॰ कमेटीके निम्न प्रस्तावकी ओर आकर्षित करता है।

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंको कठिनाइयोंसे गहरी सहानुभूति व्यक्त करती है, और उन्हें आश्वस्त करती है कि कांग्रेस दक्षिण आफ्रिकामें उनका अपना दर्जा और आत्म-सम्मान बनाये रखनेके लिए
 
  1. यह १९२४ में साम्प्रदायिक दंगोंके प्रायश्चित स्वरूप किया गया था; देखिए खण्ड, १८४।