पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
पत्र : एकको
का सब समान हैं। यह बिलकुल ही बेकारकी बात है। जो लोग अज्ञानमें ही सुख मानते हों, वे भला सत्यको जाननेका प्रयत्न क्यों करेंगे? ऐसे लोगोंको अपनेकर आपको सत्यका अन्वेषी कहनका कोई अधिकार नहीं है। उन्हें तो सत्यका दुश्मन कहना चाहिए। सत्य तो सत्य ही है, इसमें जरा भी समझौता करनेकी गुंजाइश नहीं है। मैं एक क्षणके लिए भी यह विश्वास नहीं कर सकता कि एक सच्चा हिन्दू ईसाई भी माना जा सकता है या एक सच्चा बौद्ध हिन्दू माना जा सकता है अर्थात् किसी भी धर्मका सच्चा अनुयायी किसी भी दूसरे धर्मकी परिधिमें आ सकता है। समझमें नहीं आता कि कलकी बैठकमें आप ऐसा किस तरह कह पाये। आप जैसा उत्कृष्ट, सुशिक्षित और अनुभवी व्यक्ति और इस प्रकारको सरासर गलत बातें कैसे कह सकता है?

हदयसे आपका,

[पुनश्च :]

जब पत्र टाइप हो चुका तब मुझे उक्त प्रार्थना-गीतकी एक नकल मिली। उसे साथ भेज रहा हूँ। आप देखेंगे कि श्री हैबर उन पंक्तियोंमें केवल गैर-ईसाइयोंके बारेमें कह रहे हैं। यह प्रार्थना-गीत अब भी साधारण [ईसाई] भजन-पुस्तकोंमें है। मैंने दक्षिण आफ्रिकाके गिरजाघरोंमें अकसर उसका गायन होते सुना है।

[मो॰ क॰ गांधी]

रेवरेंड ऑलबुड
बैरकपुर]

अंग्रेजी पत्र (एस॰ एन॰ १०६४८) की फोटो-नकलसे।

 

३. पत्र : एक मित्रको[१]

१४८, रसा रोड
कलकत्ता
१ अगस्त, १९२५

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। यदि किसी आदमीके अहातेमें जंगली जानवर आते रहते हों तो वह उन्हें गोलीसे मारने में दोष नहीं मान सकता। इसे अपरिहार्य हिंसाकी श्रेणी में रखा जायेगा और यह आवश्यकताके आधारपर न्यायसंगत माना जायेगा; किन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं कि जिस व्यक्तिको अहिंसाका भरपूर और स्पष्ट दर्शन हो गया है उसके लिए अपनी जमीनमें जंगली जानवरोंका आने देना अथवा उनके

  1. नाम ज्ञात नहीं हो सका।