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भाषण : भागलपुरकी सार्वजनिक सभामें

अलग रहे हैं, उन सभीका कल्याण करे। न केवल ये दो जातियाँ, वरन् भारतमें रहनेवाले सभी वर्ग और सभी प्रान्तोंके लोग भाइयोंकी तरह मिल-जुलकर रहें और दूसरोंकी स्त्रियोंको अपनी माँ-बहन समझें। मैं चाहता हूँ कि हरएक मुसलमान यह समझे कि सिर्फ वही लोग तलवारके बूतेपर इस्लामको बचानेकी सोचते हैं, जिनकी मति भ्रष्ट हो गई है। जो हिन्दू तलवारके जोरपर हिन्दू-धर्मकी रक्षा करना चाहते हैं उनसे भी मेरा कहना है कि अगर आप तलवार खींचकर मैदानमें आना चाहते है तो शौकसे आयें, लेकिन भगवानके लिए, किसी तीसरेको बीचमें फैसला करने के लिए न बुलायें। आप लोग एक-दूसरेसे बचना चाहते हैं और इसीलिए आप मानते है कि एक तीसरा पक्ष होना जरूरी है। इसलिए मुझे अपने हृदयके देशमें लौट जाना ही ठीक जान पड़ा है। हिन्दू-मुस्लिम झगड़ोंके लिए मैं और उपवास नहीं करनेवाला हूँ। किसी मनुष्यके लिए जो कुछ भी शक्य था, वह सब मैंने करके देख लिया है। अब तो मैं ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि वह मुझे और भी प्रकाश दिखाये। मेरा खयाल है कि समय आनेपर हिन्दू और मुसलमान दोनोंको सद्बुद्धि आ जायेगी, लेकिन अभी तो जो लड़ना चाहते है, उन्हें लड़ने दीजिए। अगर वे अहिंसाको एक धार्मिक कर्तव्य मानकर उसका पालन करें तो कितना अच्छा हो। हिंसा क्या है, इस बातको पूरी तरह जान लेनेके बाद ही मैं अहिंसाको पहचान पाया हूँ। मैं यह कई बार कह चुका हूँ और अब फिर कहता हूँ कि अहिंसाके नामपर हाथपर-हाथ धरे बैठे रहनेसे हिंसा करना कहीं अच्छा है। अपना अहिंसाका सन्देश में एक बुजदिलको दे सकता। उसको मै शान्तिका पाठ नहीं पढ़ा सकता। मैं केवल उन्हींको शान्तिका, अहिंसाका पाठ सिखा सकता हूँ, जो मौतसे नहीं डरते, जो अपने विपक्षियोंसे नहीं डरते। मौलाना शौकत अलीने एक बार मुझसे कहा कि उन्होंने और उनके भाईन जब अहिंसाको नीतिके रूपमें स्वीकार किया था, तब उनके दिमाग बिलकुल दुरुस्त थे। उन्होंने उसे स्वीकार इसलिए किया कि वे जानते थे कि जिस अहिंसाके पालनका सुझाव मैंने दिया है, उसके पालनमें तो उनकी सारी बहादुरीकी कसौटी हो जायेगी। वे जानते थे कि अहिंसाधर्ममें भी यह जरूरी है कि आदमी मर मिटनेकी कला जाने और उसपर अमल करे और अवसर आनेपर वे सहर्ष अपने प्राणोंका बलिदान करनेके लिए तत्पर थे। लेकिन उन्होंने महसूस किया कि आज अपनी तलवारका प्रयोग करते हुए मृत्युको प्राप्त होना आत्मघात होगा; और चूंकि वे राष्ट्र और इस्लामकी सेवामें अपने प्राणोंकी आहुति चढ़ाना चाहते हैं, इसलिए उन्हें बिना रक्तपात किये ही मरना होगा।

जब कभी मुझे कहीं कायरता और भय दिखाई देता है, तो मैं लोगोंसे तलवार उठानेको कहता हूँ। १९२१में जब मैं बेतिया गया था, तब पासके एक गाँवके लोगोंने मझे बताया कि पुलिसवालोंने उनकी स्त्रियोंको तंग किया तथा उनके घर लट लिये। और जिस समय पुलिसवाले यह सब कर रहे थे, वे लोग भाग गये थे। जब मैंने उनसे इसका कारण पूछा तो वे एकदम बोल उठे कि मेरी अहिंसाकी शिक्षाके कारण ही। उस समय मुझे लगा कि अगर धरती फट जाये तो मैं वहीं उसमें समा जाऊँ।