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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

क्या कभी मैंने यह कहा था कि किसी भी स्थितिमें बलप्रयोग न किया जाये? अगर किसीको बिना रक्तपात किये मरना नहीं आता तो उसे चाहिए कि अपने सम्मान और अपनी सम्पत्तिकी रक्षाके लिए प्रतिपक्षीपर प्रहार करे और मर मिटे। मैंने उनसे कहा कि इससे पहले कि कोई उनकी स्त्रियोंको हाथ भी लगाये, उन्हें मर मिटना चाहिए और अगर प्रतिकारमें हाथ उठाये बिना उन्हें मरना कबूल न हो तो उन्हें चाहिए कि वे तलवार उठायें और जीते जी किसीको अपनी स्त्रियोंको हाथ न लगाने दें। उन्हें अपनी स्त्रियोंको भी सिखाना चाहिए कि किस प्रकार अपनी इज्जत-आबरूकी रक्षा करें। इससे पहले कि कोई उनके शरीर छुये, वे अपने प्राण दे दें। जो मरना जानता है, वह सदा-सर्वदाके लिए मुक्त हो जाता है। शस्त्र उसके लिए निरर्थक हो जाते हैं। तलवार चलानेवाला व्यक्ति तो अपनी तलवारके बेकार होते ही अपनी सारी शक्ति खो बैठता है, लेकिन जो व्यक्ति अपराधीपर प्रहार करके उसे चोट पहुँचाये बिना मरनेकी कला जानता है, वह अपना कर्तव्य निबाहता हुआ वीर गति पाता है। उसके शस्त्रका कभी नाश नहीं होता। पर जो लोग अपनी स्त्रियोंको उनके भाग्यके भरोसे छोड़कर भाग खड़े होते हैं, उनसे मैं क्या कह? ऐसे लोग पशुओसे भी बदतर है। इस तरह भाग खड़े होनेसे तो यह बहुत अच्छा होगा कि वे तलवार उठाकर भिड़ जायें। लेकिन बुजदिल तो तलवार भी नहीं उठा सकता। अपनी सुरक्षाके लिए वह सरकारके पास जाता है, गुण्डे रखता है और क्या-कुछ नहीं करता। ऐसे लोगोंसे मैं क्या कहूँ? मैं तो केवल एक ही बात जानता हूँ और सारे भारतको मैं वही सिखानेका प्रयत्न कर रहा हूँ; और चाहता हूँ कि सारी दुनिया भी इसे सीखे। अगर आप इसे नहीं सीखेंगे तो मैं नहीं कह सकता कि आगे क्या होनेवाला है। आज भारतके करोड़ों लोग तलवारका प्रयोग नहीं कर सकते; और मुझे नहीं लगता कि निकट भविष्यमें भी वे ऐसा कर सकेंगे। मुझे नहीं मालूम कि एक सौ वर्षके बाद भी ऐसा दिन आ रहा है या नहीं। लेकिन यह बात मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि अगर भारत चाहे तो वह आज भी स्वतन्त्र हो सकता है। जो-कुछ भी मैंने कहा है, उसका निचोड़ यही है कि अब हिन्दुओं और मुसलमानों, दोनोंपर से मेरा प्रभाव उठ गया है, इसलिए मेरा बताया उपाय निरर्थक माना जा सकता है। और जो लोग लड़नेपर तुले हुए हैं, वे जी-भरकर लड़ सकते है, लेकिन जो डरकर भाग खड़े होते हैं, उनके लिए मेरे पास कोई इलाज नहीं है।

अब आता है खादीका सवाल। यह ऐसा कार्य है, जिसमें हर व्यक्ति भाग ले सकता है। लेकिन यदि सारा देश खादी छोड़ दे तब भी कमसे-कम मैं तो अपना चरखा छोड़नवाला नहीं हूँ। आपका कहना है कि आप खादीका काम अधिक नहीं कर पाये हैं। इसके लिए जो कारण आपने पेश किये हैं उनमें एक कानूनी कठिनाई है। यह सच है। इसमें सन्देह नहीं कि कानूनी कठिनाइयाँ हैं, लेकिन मैं पूरी सभा, नगरपालिका और जिला बोर्ड के सदस्योंसे पूछता हूँ कि क्या कोई ऐसा भी कानून है जो आपको खुद खादी पहननेसे रोकता हो। लेकिन अगर आपके खादी न पहननेके कारणोंमें एक यह हो कि महीन खादी नहीं मिलती तो आप खुद ही महीन सूत कातें