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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

श्यता समाप्त कर देनी चाहिए। अगर आप इस बुराईसे मुक्त नहीं हो जाते तो आप एक दिन हिन्दू धर्मसे हाथ ही धो बैठेगे। वह धर्म सच्चा धर्म नहीं हो सकता, जो एक भी व्यक्तिसे घृणा करना सिखाता हो। कोई व्यक्ति बहुत बड़ा अपराधी भी क्यों न हो, आपका काम उसके प्रति घृणा करना नहीं है। बल्कि उसके प्रति आपका न्यूनतम कर्तव्य यह है कि आप उसे सुधारें। अस्पृश्य लोग तो राष्ट्र के सेवक है, फिर उनसे घृणा क्यों? तो अब हम ऐसा मानें कि उनका स्पर्श करना पाप नहीं है। उनसे दूर नहीं भागना चाहिए। जो लोग सनातनी हिन्दू होनेका दावा करते है उनसे मेरा कहना है कि अस्पृश्यताको जिस रूपमें समझा जाता है, उस रूपमें यह न तो वेदोंमें ही मिलती है और न शास्त्रों में। रामचन्द्रजीको गुहराजको छूने में कोई झिझक नहीं हुई थी। उन्होंने गुहराजको गले लगाया था, उसके हाथोंका जल पिया था। भरतजीने तो गुहराजको साष्टांग प्रणाम किया था।

आपने मद्यपानका भी जिक्र किया है। यह सच है कि १९२१ में हमने इसे बहत कम कर दिया था, दरअसल लगभग छोड़ दिया था, लेकिन अब किनारे लगी नया फिर धारामें बह गई है। मुझे मालूम है कि उस समयके धरना देनेवालोंने कभीकभी हिंसासे भी काम लिया था। यदि हिंसाका प्रयोग न किया गया होता तो शायद यह धरना भी बन्द न किया जाता। लेकिन आज भी इस दिशामें आप थोड़ा-बहत जो भी कर सकते हैं वह करें और दूसरोंको यह लत छोड़नेके लिए समझायें तो अच्छा हो। इसी तरह आपको बीड़ी-सिगरेट पीना तथा गाँजा, भाँग आदि मादक द्रव्योंका सेवन करना भी छोड़ देना है।

[अंग्रेजीसे]
सर्चलाइट, १६–१०–१९२५
 

१५७. भाषण : मारवाड़ी अग्रवाल सभा, भागलपुरमें

१ अक्तूबर १९२५

अभी कुछ दिन पहले भागलपुरमें मारवाड़ी अग्रवाल सभाका पहला अधिवेशन हुआ था। उसमें मारवाड़ी जातिको ओरसे गांधीजीको एक मानपत्र भेंट किया गया। मानपत्रका उत्तर देते हुए गांधीजीने कहा कि जब मुझे ऐसा लगा कि बिहारका दौरा पूरा करना मेरी सामर्थ्यसे बाहर है तब यह समस्या उठ खड़ी हुई कि मुझे कहाँ-कहाँ जाना चाहिए और कहाँ-कहाँ नहीं। इसपर विचार हो ही रहा था तभी मैंने राजेन्द्र बाबूसे कह दिया कि भागलपुरको नये कार्यक्रममें भी जरूर शामिल कर लें। कारण यह था कि राँचीमें मुझे आपका वह तार मिल चुका था, जिसमें मुझे यहाँ आनेके लिए आमन्त्रित किया गया था। और फिर यह बात भी थी कि भागलपुर आनेसे मेरा काम भी सधता था। मुझे लगा कि आपके पास पहुँचकर मुझे आपसे