पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/३२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२९०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

से मनुष्य सीधे स्वर्गको जाता है, वे तो उसी शिक्षाका पालन कर रहे है। इस तरह ये महात्मा अस्पृश्यताको महापाप मानते हैं। वे अस्पृश्योंको, वे लोग जहाँ रहते हैं, वहाँसे अच्छे स्थानमें ले जाते हैं, उन्हें भोजन देकर उनकी भूख मिटाते है। वे उन्हें प्रेमपूर्वक भोजन खिलाते हैं, हमारी तरह जूठा नहीं परोस देते। मैंने स्वयं अपनी मां और पत्नीको उन्हें इस तरह जूठन देते देखा है। हमारे घरोंमें कुत्तों, गाय-बैलों आदिके लिए भोजनकी अलहदा व्यवस्था रहती है। पर इन अस्पृश्योंको तो जूठा ही दिया जाता है। मैं इसे दया-धर्म नहीं मानता। हमें अस्पृश्योंको भी प्रेमसे भोजन कराना चाहिए। उससे हम अपने धर्मसे डिगते नहीं है। कुछ लोग इस भावनासे काम करते हैं, लेकिन समाज उनका बहिष्कार करता है। ऐसे लोगोंसे मेरा यही अनुरोध है कि वे अपनी जाति या समाजके लिए मनमें किसी प्रकारकी दुर्भावना या घृणा न आने दें। यदि समाज उनका बहिष्कार करता है तो करे। उन्हें समाजसे कह देना चाहिए कि इन परिस्थितियोंमें बहिष्कृत होना ही वे अपना धर्म मानते हैं; वे आज जो-कुछ कर रहे हैं वही सही है और भविष्य में भी वे ऐसा ही करेंगे। जब समाजके प्रतिष्ठित लोग गलत रास्ते पर हों और अज्ञान या द्वेषवश किसी व्यक्तिका बहिष्कार करना चाहें तो जो व्यक्ति उनसे सहमत न हो उसका यही कर्तव्य है कि वह अपना बहिष्कार होने दे। हम लोग स्वार्थमें डूबे हुए हैं। मुझे तो इस स्वार्थ-लिप्साका कोई औचित्य नहीं दिखाई देता। मुझे अपने सामने पतित और भ्रष्टचरित्र व्यक्ति दिखाई देते हैं, जिनके पाप हमसे छिपे हुए नहीं है। पर समाज उनका तो बहिष्कार नहीं करता। शराबी और मांसखोर समाजके अंग बने हुए हैं। पर जैसे ही हम अपना धर्म मानकर किसी अस्पृश्यको छूते है वैसे ही हमारा बहिष्कार कर दिया जाता है। यह तो सिर्फ मनमानी है और इससे समाजका सर्वनाश हो जायेगा। बहिष्कारका तो अपना अलहदा शास्त्र और तरीका है। उसकी ब्यौरेवार चर्चा करने में मैं आपका समय नहीं लेना चाहता।

पर समाजमें जिनका कुछ प्रभाव है, कुछ प्रतिष्ठा है, उनसे मेरा यही अनुरोध है कि वे सोचे-समझे बिना फौरन किसीका बहिष्कार न करें। जो जातिमें किसी भी प्रकार सुधार करना चाहते हैं, उनके लिए सहानुभूति दिखाइए। जिस हिन्दू-धर्मकी हम रक्षा करना चाहते हैं, उसीको नष्ट न करें। भविष्यमें विभिन्न जातियोंका आपस में मिश्रण होगा। मेरा आपसे यही अनुरोध है कि आप बहिष्कारके अस्त्रका त्याग करें, क्योंकि जबतक हममें सभी प्रकारका भ्रष्ट तथा पापपूर्ण आचरण करनेवाले लोग विद्यमान है और जबतक हममें आत्म-संयम तथा आत्म-निग्रहकी भावनाका विकास नहीं होता, तबतक बहिष्कार करनेसे कुछ लाभ नहीं होगा।

इसके बाद महात्माजीने कहा कि वर्णाश्रम-धर्म एक बात है और कई छोटीछोटी जातियोंका अस्तित्व बिलकुल दूसरी बात है।

भिन्न-भिन्न प्रान्तोंमें रहनेवाले एक ही जातिके लोग एक-दूसरेसे दूर, विभिन्न पेशोंमें लगे होनेके कारण एक-दूसरेके लिए अजनबी बन गये हैं। यही संकीर्णता है। आपका सम्मेलन मुझे तभीतक अच्छा लगेगा जबतक वह समाजका कल्याण करता है। ब्राह्मणोंकी एक ही जाति हो सकती है। एक गुजराती ब्राह्मण अपनी कन्याका विवाह बंगाली