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भाषण : मारवाड़ी अग्रवाल सभा, भागलपुर में

या मारवाड़ी ब्राह्मणसे क्यों नहीं कर सकता? ऐसा सम्बन्ध करनेवालेका समाज बहिष्कार क्यों करे? शास्त्रोंमें कहाँ लिखा है कि गुजरातका वैश्य किसी दूसरे प्रान्तके वैश्यसे कोई रिश्ता नहीं कर सकता? यदि मारवाड़ियोंकी विभिन्न जातियोंके बीच सम्बन्ध अधर्म माने जाने लगे तो जल्दी ही आपको इस जातिका नामोनिशान भी न मिलेगा। आज ढोंग और झूठका बोलबाला है। यदि आप वर्णाश्रम धर्मका पालन करना चाहते हैं तो आपको इनका त्याग करना पड़ेगा। यदि बड़े-बड़े लोग अपने बड़प्पनके नशेमें है तो कार्यकर्ताओंका कर्तव्य है कि वे अडिग भावसे अपना काम करते जायें। कोई इनका बहिष्कार करे, धोबी, नाई या नौकर उनका काम न करें और उन्हें कष्ट उठाने पड़े तो भी उसकी परवाह वे न करें। गुजरातमें अब ऐसी स्थिति आ गई है। जिन सज्जनका मैंने उपर उल्लेख किया है, उन्होंने मुझे लिखा है कि उन्हें अपने लिये धोबी, नाई या कहार कोई नहीं मिलता है। मैंने उनको यही उत्तर दिया है कि जिस पथपर चलना वे अपना धर्म समझते हैं, उससे जरा भी विचलित होने के बजाय भूख-प्याससे तड़पकर मर जाना कहीं अच्छा है। यदि बड़े-बड़े, प्रतिष्ठित लोग धर्माचरणके मार्गसे विचलित होते हैं और आपका बहिष्कार करते है तो आपका कर्तव्य यही है कि आप ऐसी बुद्धिमानीसे काम लें और सभी अपमान ऐसे संयम और साहससे सहन करें कि अन्तमें आपके विरोधी हार मान लें। प्रह्लादके पिताने उसका बहिष्कार तो किया पर वह उसे चुप नहीं करा सका, न उसका काम ही बन्द करा सका। प्रह्लादने अपने सभी सहपाठियोंको राम-नाम लेना सिखाया और इस प्रकार अपने पिताकी आज्ञाका सविनय उल्लंघन किया। किसी भी जातिका सदस्य अपनी जातिके प्रति ऐसा विरोध कर सकता है।

इसके बाद महात्माजीने बाल-विधवाओंके पुनर्विवाहकी समस्याकी चर्चा की। उन्होंने कहा कि पहले में सोचता था कि समाजमें दस या बीस हजार बाल विधवाओंका होना बर्दाश्त किया जा सकता है। पर जो हालत अब है, उसे देखते हुए इस दिशामें कुछ भी सुधार करना जरूरी है। उन्होंने कहा :

पहले में सोचता था कि यदि विधुर फिरसे विवाह न करे तो भी समस्या हल हो जायेगी, पर कोई भी इसे स्वीकार नहीं करता। सच तो यह है कि कई लोग श्मशानमें ही अपने पुनर्विवाहकी बातचीत शुरू कर देते हैं। कुछ लड़कियोंके पिता उनकी सगाई तार द्वारा सूचना भेजकर ही कर देते है और यदि १२ सालकी लड़कीके लिए ४५ सालका वर मिल रहा हो तो भी कोई परवाह नहीं करते।

इसलिए आजकी परिस्थितियोंको देखते हुए मैं इसी नतीजेपर पहुँचा हूँ कि बाल-विधवाओंका पुनर्विवाह करना ही होगा। यदि हम ऐसा नहीं करते तो बालविधवाओंमें आत्महत्याकी घटनाएँ बढ़ती जायेंगी। बंगाल और दिल्लीमें बहुत-सी बालविधवाओंने आत्महत्या की है। इन बाल-विधवाओंसे वैधव्यका जीवन व्यतीत करानकी जबर्दस्तीका हमें क्या अधिकार है? ऐसी विधवाओंका फिरसे विवाह करना हमारा कर्तव्य और धर्म है। एक बहनने मुझसे पूछा कि क्या लड़कियोंकी विवाह-वय कमसेकम चौदह वर्ष निश्चित करानेमें मैं उनकी सहायता कर सकता हूँ। मुझे तो उनसे