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१६०. चरखा संघ

चरखा संघकी स्थापना कोई साधारण बात नहीं है। इसकी स्थापना संस्थापकोंकी प्रतिज्ञाका चिह्न है; उससे उनका चरखके प्रति विश्वास, और उस के लिए अपना सब-कुछ अर्पण करने का संकल्प प्रकट होता है।

मेरा मन तो यह कहता है कि स्वराज्य चरखमें ही है। मैं इसके बिना करोड़ोंकी सेवा अशक्य मानता हूँ। प्रत्येक मनुष्य खुद बाकीके सभी मनुष्योंके पास जाकर उनकी सेवा नहीं कर सकता, किन्तु वह किसी ऐसे काममें मदद कर सकता है कि जिससे सबकी सेवा होती हो, जिसका फल सबको मिल सकता हो। और ऐसा काम है सिर्फ चरखा चलाना। चरखा करोड़ों के पास पहुँच सकता है; वह करोड़ोंको भूखों मरनसे बचा सकता है, करोड़ों के लिए अन्नपूर्णा बन सकता है। मैं टोकनी बनाने के कारखाने में लगू तो उससे दो-चार हजार मनुष्योंकी मदद हो सकती है, साबुनका कारखाना भी दो-चार हजारको रोजी दे सकता है, कपड़ेकी मिल भी दो-चार हजारको अथवा सब मिलें एक-साथ दस-पन्द्रह लाखको आजीविका और दो-चार हजारको अपनी पूंजीका ब्याज दे सकती है। किन्तु यदि मै चरखके प्रचारमें लग जाऊँ तो उसका मतलब करोड़ोंको भोजन देनेवाले कारखाने में लगने जैसा होगा।

पाठक विचार कर देखेंगे तो उन्हें कोई दूसरा ऐसा धन्धा दिखाई नहीं देगा, जिससे करोड़ोंकी सेवा हो सके। हाँ, एक खेती है। किन्तु खेती तो अभी चल ही रही है, और उसे भी मनुष्य चाहे जब, चाहे जिस क्षण और चाहे जितनी अवधितक नहीं कर सकता। लेकिन सूत? मनुष्य उसे चाहे जहाँ कात सकता है, तकली जेवमें रखकर चलते-चलते भी दो-तीन गज यज्ञार्थ कात सकता है। एक क्षणका काता हुआ सूत भी काममें आ सकता है : किन्तु एक क्षणकी खेतीसे कछ भी हासिल नहीं होगा। उसमें तो एक ही जगहपर विशेष रूपसे और काफी समयतक काम करना होता है। इसीसे चरखा महायज्ञ है। वह सभीके लिए सुलभ है।

जो ऐसी वस्तु दे उस संघकी सेवा कौन न करेगा? चरखेके कार्यक्रममें जो दोष ढूँढ़ते हैं उन्हें कौन समझाये? इस देशकी दौलतमें दो गज सूतका बढ़ना अच्छा न लगनेका क्या कारण है? और सो भी फुर्सतके समयमें काता हुआ सूत।

मेरी इच्छा है कि सब भाई-बहन इस संघमें शामिल हों। चन्देमें दो हजारके बजाय एक हजार गज सूत लेना तय हुआ। यह मुझे ठीक मालूम नहीं हुआ। और भी बहुतेरोंको यह ठीक नहीं लगा। परन्तु इसे इस संघमें शामिल न होनेका कारण नहीं बनाया जा सकता। कोई अपनी इच्छासे दो हजार गज देनेवालोंमें रह सकते हैं। प्रतिज्ञा लेना बहत अच्छा है। लेकिन प्रतिज्ञा लेनेकी शर्त निकाल डाली गई है। इसका अर्थ यह नहीं कि प्रतिज्ञा लेने की इच्छा रखनेवाले शामिल न हों। वे खद प्रतिज्ञा तो अवश्य लें, और प्रतिज्ञा न लें तो भी यह बात मान ली गई है कि अनिवार्य कारण न हो तो प्रतिदिन सभी आधा घंटा तो अवश्य ही कातेंगे। प्रतिज्ञा-पत्र