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दक्षिण अफ्रीकाके विषयमें



यह संघ सेवाके लिए है, अधिकारके लिए नहीं। जहाँ सरदारीकी गंधके लिए भी स्थान न हो और जहाँ सेवा ही धर्म हो वहाँ अधिकारके लिए स्पर्धाका तो प्रश्न ही नहीं उठता। मैं तो चाहता हूँ कि जिनको सेवा करनी हो वे अपने विचार लिखकर भेजते रहें। यदि विचार-समिति बनाई जाये तो उसकी बैठकें होनी चाहिए। जहाँ नई नीति अथवा पद्धति चलाना हो वहाँ ऐसी वस्तुओंकी आवश्यकता होती है। यहाँ तो काम ही की देखरेख करनी है। इसलिए मैं तो मानता हूँ कि १२ लोगोंकी समिति ही ठीक है। उसमें भी अभी तीन जगहें भरना बाकी ही हैं। क्योंकि सब जगहें भरनेकी जरूरत नहीं मालूम हुई। विशेष बातें अनुभवसे मालूम होंगी।

खादीका व्यापार परोपकारके लिए है। सामान्यतः व्यापारमें परोपकारके लिए स्थान नहीं होता। माना जाता है कि व्यापार और परोपकार एक दूसरेके विरोधी है। राज्यसत्ताकी सहायता न मिले और परोपकार भी उसमें न हो तो फिर खादीका व्यापार चल ही नहीं सकता। खादी बनाने और बेचनेवालोंको जिस प्रकार परोपकार सीखना आवश्यक है उसी प्रकार खादी खरीदनेवालोंको भी परोपकारकी भावना हासिल करना जरूरी है। पेरिसकी लेस अथवा मैन्चेस्टरकी मलमल बहत ही अच्छी लगती हो तो भी उसका त्याग करके जो खादी ही को अपनायेगा वह तो परोपकार ही करेगा, इसमें शक नहीं।

हे ईश्वर, सेवा-भाववाले खादी सेवकोंकी वृद्धि कर।
[गुजरातीसे]
नवजीवन, ४-१०-१९२५
 

१६१. दक्षिण आफ्रिकाके विषयमें

दक्षिण आफ्रिकाके भारतवासियोंपर आजकल जो अत्याचार हो रहा है उसके लिए उन्हें धैर्य देने तथा सहायता करने के लिए ११ वीं अक्तूबरको जगह-जगह सभा करनेके बारेमें अ॰ भा॰ कां॰ कमेटीने एक प्रस्ताव पास किया है। इन सभाओं में सभी पक्षोंके व्यक्तियोंको निमन्त्रित करना जरूरी है। इस प्रश्नके विषयमें किसीका मतभेद तो है ही नहीं। अतएव ऐसी आशाकी जाती है कि सभी पक्षों के लोग इस अवसरपर हाजिर होंगे। हमारी सहानुभूति पाकर दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंको कुछ धीरज होगा। यदि भारत सरकार भी उनको कुछ मदद देना चाहे तो ये सभाएँ उसमें भी सहायक होंगी और कुछ नहीं तो हम जितनी दे सकते हैं उतनी सहायता तो उन्हें मिलेगी ही। मुझे आशा है कि जगह-जगह सभाएँ होंगी और उसमें लोग हाजिर होंगे। कोई भी राजनीति जाननेवाला मनुष्य दक्षिण आफ्रिकाके प्रश्नसे बिलकुल अपरिचित तो नहीं ही होगा।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ४-१०-१९२५