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वक्तवय : समाचारपत्रोंको

[पुनश्च :]

नवम्बरके शुरूमें मैं आश्रम पहुँचूँगा।
अंग्रेजी पत्रकी फोटो-नकलसे।
सौजन्य : नेशनल आर्काइव्ज ऑफ इंडिया
 

१६३. वक्तव्य : समाचारपत्रोंको

७ अक्तूबर, १९२५

सौभाग्यसे दक्षिण आफ्रिकाके ब्रिटिश भारतीयोंका प्रश्न किसी दल-विशेषका प्रश्न नहीं है। उस उप-महाद्वीपमें हमारे देशभाइयोंपर जो महासंकट आनेवाला है, उससे उन्हें बचाना भारतका धर्म है। प्रस्तावित विधेयक[१] १९१४ के समझौतेका खुला उल्लंघन है। दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंके प्रश्नके बारेमें मैंने तो यही देखा है कि सरकार लगातार अपने वचनों और घोषणाओंका उल्लंघन करती रही है। यह बात सरकारी कागज-पत्रोंसे भी प्रमाणित होती है। प्रस्तावित विधेयकका मतलब, दरअसल, ब्रिटिश भारतीयोंके उन तमाम अधिकारोंका अपहरण है, जो आज उन्हें प्राप्त है। उनका एकमात्र अपराध यही है कि वे अच्छे व्यापारी है और यूरोपीय नहीं है। इस मामले में कोई समझौता नहीं हो सकता। भारतीयोंकी स्वदेश-वापसीकी कोई योजना स्वीकार नहीं की जा सकती, चाहे उसे मीठे शब्दोंमें स्वेच्छया स्वदेश-वापसीकी योजना ही क्यों न कहा जाये। फिर भी मैं स्पष्ट कहना चाहूँगा कि जवाबी कार्रवाईसे कोई लाभ नहीं होगा—भले ही इसका कारण सिर्फ यह हो कि हम कारगर तरीकेसे कोई जवाबी कार्रवाई नहीं कर सकते। इसका एक-मात्र उपाय यही है कि राजनीतिक दबाव डाला जाये। लॉर्ड हाडिगने इस उपायका सफल प्रयोग किया था[२]क्या मौजूदा सरकार इसकी पुनरावृत्ति करेगी?

[अंग्रेजी से]
बाॅम्बे क्राॅनिकल, १२-१०-१९२५
 
  1. क्षेत्र निर्धारण और प्रवास तथा पंजीपत्र-सम्बन्धी अतिरिक्त धारा विधेयक; (एरियज रिजर्वेशन ऐंड इमिग्रेशन ऐंड रेजिस्ट्रेशन फरदर प्रोवीजन बिल); यह विधेयक जुलाई, १९२५ में संघ संसदमें पेश किया गया था। इस विधेयक का उद्देश्य एशियाइयोंको कुछ निर्धारित क्षेत्रके अलावा अन्य स्थानोंमें जमीन लेनेसे वर्जित करना था‌। देखिए खण्ड, २७।
  2. तात्पर्य शाषद लॉर्ड हार्डिग द्वारा नवम्बर, १९१३ में मद्रासमें दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंकी स्थितिके सम्बन्धमें दिये गये भाषणसे है। देखिए खण्ड १२, पृष्ठ ५९१।