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१६४. पत्र : डाह्याभाई पटेलको

आश्विन सुदी ५
[७ अक्तूबर, १९२५][१]

भाई डाह्याभाई,

तुम्हारा लम्बा पत्र तो मैं अभीतक नहीं पढ़ सका हूँ। कल दूसरा पत्र मिला। मेरा ३१ अक्तूबरको आ सकना तो सम्भव नहीं है। लेकिन नवम्बरके आरम्भ में आश्रम पहुँचूंगा और तब अवश्य ही दिन मुकर्रर कर दूँगा।

मोहनदासके वन्देमातरम्

जराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ २६९२) से।
सौजन्य : डाह्याभाई एम॰ पटेल
 

१६५. भाषण : गिरीडीहकी सार्वजनिक सभामें[२]

७ अक्तूबर, १९२५

महात्माजीने कहा कि मुझे ऐसा बताया गया है कि गिरीडीहके अभ्रक क्षेत्र होने के कारण मजदूर लोग खानोंमें काम करके ज्यादा पैसा कमा लेते हैं। इसलिए उन्हें चरखा चलाने को तैयार नहीं किया जा सकता। मैंने उनसे कहा कि मजदूर लोग चरखा न चलायें, यह बात तो मैं समझ सकता हूँ, लेकिन यह समझमें नहीं आता उनके खादीका उपयोग करनमें क्या अड़चन है। मध्यवर्गीय लोगोंके पास काफी खाली समय होता है और अगर वे चाहें तो, अपने लिये नहीं बल्कि देशके लिए, प्रतिदिन आधा घंटा चरखा चला सकते हैं और अपना काता सूत दानके तौरपर कांग्रेसको दे सकते हैं। सस्ते विदेशी कपड़ेको तुलनामें खादी महेंगी जरूर होती है, लेकिन महँगी होते हुए भी वह सस्ती है, क्योंकि उसपर लगाया गया पैसा सीधे गरीब बहनों और बुनकरोंकी जेबोंमें जाता है। इसके बाद अस्पृश्यताकी चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि यह हिन्दू धर्मके लिए घोर कलंककी बात है। आप अस्पृश्योंके लिए एक स्कूल चलाते हैं, इसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ, लेकिन जबतक आप खुद उनके पास जाकर उनसे मिलते-जुलते नहीं और उनकी गरीबी और दुःख

 
  1. डाककी मुहरसे।
  2. गांधीजीने यह भाषण स्थानीय निकाय, आम जनता, नगरपालिकाका तथा गोशालाकी ओर से भेंट किये गये मानपत्रों के उत्तर में दिया था।