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१६६. भाषण : गिरीडीहकी महिला सभामें

७ अक्तूबर, १९२५

उत्तर[१] देते हुए गांधीजीने मानपत्र में कही गई स्नेहपूर्ण बातोंके लिए स्त्रियोंको धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि स्वराज्यका मतलब सिर्फ राजनीतिक स्वराज्य ही नहीं, वरन् जिसे आम तौरपर रामराज्यके रूपमें समझा जाता है, उस ढंगका धर्मराज्य है। यह साधारण राजनीतिक स्वतन्त्रतासे एक बड़ी चीज है। ऐसे स्वराज्यको प्राप्त करनेके लिए आपको प्राचीन कालकी सीताके समान, जो रामराज्यको आत्मा थीं, बननेका प्रयास करना होगा। जैसे आप घर-घरमें चूल्हा देखती हैं, उसी प्रकार सीताके समयमें हर घरमें चरखा भी होता ही था। सीता भी अपने चरखेपर कातती थीं। उनका चरखा शायद रत्नजटित और स्वर्णमण्डित रहा होगा, लेकिन फिर भी वह था तो चरखा हो। साथ ही आपको अपने जीवनमें पवित्रता लानके लिए भी उनको अपना आदर्श मानकर चलना चाहिए। भाषणके अन्तमें गांधीजीने देशबन्धु स्मारक कोषमें दान देनके लिए अपील की, जिसके फलस्वरूप वहीं एक अच्छी खासी रकम जमा हो गई।

[अंग्रेजीसे]
सर्चलाइट, ११–१०–१९२५
 

१६७. बिहारके अनुभव—१
आदिवासियोंके बीच

चक्रधरपुरसे चोईबासातक की सड़क बड़ी अच्छी है। उसपर मोटर गाड़ीसे सफर करनेमें बड़ा आनन्द आता है। चोईबासामें ही मेरा परिचय हो-जातिके लोगोंसे हुआ। स्त्री-पुरुष दोनों काफी दिलचस्प है। बालकोंकी तरह सीधे और सरल; लेकिन उनमें आस्था बहुत गहरी है। उन्हें कोई उससे सहज ही डिगा नहीं सकता। बहुतोंने चरखा और खादी अपना ली है। कांग्रेसी कार्यकर्ताओंने उनके बीच सुधारका काम १९२१ में शुरू किया था। फलस्वरूप बहुतोंने मृत जानवरोंका मांस खाना छोड़ दिया है, और कुछ शाकाहारी भी बन गये हैं। राँची जाते हुए खूटीमें मैं एक दूसरी जातिके लोगोंसे मिला। ये मुंडा कहे जाते हैं। इनके बीच जितना काम किया जाये, थोड़ा होगा। ईसाई धम-प्रचारक तो कई पीढ़ियोंसे इनकी बहुत अच्छी सेवा करते आ रहे हैं, लेकिन

 
  1. गांधीजीको स्थानीय कन्या पाठशालाकी प्रधानाध्यापिका द्वारा मानपत्र भेंट किया गया था, उन्हें देशबन्धु स्मारक कोशके लिए एक थैली भेंट की गई थी।