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बिहारके अनुभव—१

और भारतमें बड़े पैमानेपर ऐसी सेवा तभी की जा सकती है, जब कार्यकर्ता गाँव-गाँवमें प्रवेश करके यह काम करें। इसके अलावा इस कामके बदले किसी पुरस्कारकी आशा नहीं रखनी चाहिए; यह अपना पुरस्कार आप ही है, क्योंकि इस काममें सनसनी-जैसी कोई बात नहीं है, न इसका विज्ञापन ही होता है और अकसर यह काम बहुत ही कठिन परिस्थितियों में तथा अन्धविश्वास और अज्ञानका सामना करते हुए करना पड़ता है। मैंने यह समझाने की भी कोशिश की कि भारतमें समाज सेवा करनेका सबसे अच्छा तरीका चरखे और खादीका प्रचार-प्रसार करना ही हो सकता है, क्योंकि इससे नौजवान लोग ग्रामवासियोंके सम्पर्कमें आते हैं, इसके बलपर वे ग्रामीणों की जेबमें चार पैसे पहुंचा सकते है, जिससे उनके और ग्रामीण लोगोंके बीच एक अटूट सम्बन्ध स्थापित हो जाता है और साथ ही यह उन सेवकोंके लिए अपने स्रष्टाको जानने में भी सहायक होता है, क्योंकि दीन-दुखियोंकी निःस्वार्थ सेवाका मतलब ईश्वरकी सेवा करना है।

खुदाबख्श पुस्तकालय

हजारी बागसे मोटरसे चलकर एक दो स्थानोंमें रुकते हुए हम गया आये और वहाँसे पटना पहुँचे। पटना जानेका मुख्य उद्देश्य अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी बैठकमें शामिल होना और अखिल भारतीय चरखा संघका उद्घाटन करना था। पटनामें ही मैंने ऐसा महसूस किया कि अब लगातार यात्रा करनेसे मेरा स्वास्थ्य खर जायेगा। हमारे गयाके करीब पहुँचने के समयसे ही भीड़का शोरगुल और जय-जयकार मेरे लिए लगभग असह्य हो गया और गयामें तो मुझे ऐसा लगा कि अगर इस शोरगुलको और सुनते रहना पड़ा तो मुझे गश आ जायेगा। इसलिए मैंने अपने कान बन्द कर लिये। इसलिए राजेन्द्रबाबूने इस विवेकशून्य किन्तु सदाशयतापूर्ण स्नेहके शोरगुल-भरे प्रदर्शनको रोकने के लिए काफी एहतियात बरती और कृपापूर्वक उन्होंने मेरे कार्यक्रममें परिवर्तन करके उसे कम कर दिया। इसलिए पटनामें मैं अपेक्षाकृत आरामसे रहा। मुझे खुदाबख्श ओरिएण्टल पुस्तकालय देखने की इच्छा बहुत दिनोंसे थी। इस बार मैंने अपनी इच्छा पूरी की। मैने इसके विषयमें बहुत-कुछ सुन रखा था। लेकिन, यह नहीं सोचता था कि इसके पास इतनी सारी मूल्यवान् निधियाँ पड़ी हुई हैं। इसके लगनशील संस्थापक खान बहादुर खुदाबख्श एक वकील थे। इसके लिए पुस्तकें . जुटाना उन्होंने अपना निष्काम कर्तव्य बना लिया था—वे विदेशोंसे भी अरबी और फारसीके बहुत-से प्राचीन और दुर्लभ ग्रंथ ले आये हैं। मैंने 'कुरान की जो हस्तलिखित प्रतियाँ देखीं, उनकी सजावट बहुत सुन्दर थी। उन अज्ञात कलाकारोंने निश्चय ही इसपर वर्षांतक धैर्यपूर्वक काम किया होगा। 'शाहनामा' के अलंकृत संस्करणका एक-एक पृष्ठ एक-एक नयनाभिराम कला-कृति है। मुझे बताया गया है कि इस पुस्तकालयमें सुरक्षित कुछ पाण्डुलिपियोंका साहित्यिक महत्त्व भी कम नहीं है। राष्ट्रको यह महान् देन देनेके लिए इस संस्थाके संस्थापकको जितना सम्मान दिया जाये, कम है।