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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

एक सरकारी प्रयोग

पटनामें मैने जो दूसरी दिचस्प चीज देखी, वह थी उद्योग विभाग द्वारा संचालित शिल्पशाला। इसके अधीक्षक श्री राव है। शिल्पशालाका भवन बिलकुल आधुनिक ढंगका है, जिसमें प्रकाश और हवा आने-जाने की पूरी व्यवस्था है। यह बहुत ही सुनियोजित ढंगसे बना हुआ है और बड़ा साफ-सुथरा रखा जाता है। इसमें खास तौरपर खिलौने बनाने और हाथ-करघेपर बुनाईका काम होता है। इन चीजोंके लिए पटना बड़ा मशहूर भी है। फीते और पलंगकी निवाड़ बुनने के सुधरे ढंगके करघे प्रशंसनीय हैं। फिर भी, एक बात मुझे बहुत खटकी, वह यह कि इस प्रशंसनीय शिल्पशालामें मुख्य वस्तु अर्थात् चरखेका अभाव था। सुधरे हुए तरीकोंसे खिलौने बनाकर शिल्पी लोग बेशक बेहतर कमाई कर सकते हैं। इसलिए पटना-जैसे नगरमें स्थापित शिल्पशालामें इस शिल्पको स्थान देना उचित ही था। भारतीय शिल्पशाला हाथ-करघापर बुनाई करनेके शिल्पकी व्यवस्थाके बिना भी अधूरा ही माना जायेगा, किन्तु जो राष्ट्रीय उद्योग विभाग हाथ-कताईकी ओर और इस तरह उन करोड़ों भारतीयोंकी ओर, जिनके पास आज कोई पूरक धन्धा नहीं है, ध्यान नहीं देता तो उसे किसी तरह पूरा नहीं माना जा सकता। हाथ-कताईको सफल बनाने के रास्तेमें मुझे जो अड़चनें बताई गईं, वे मुख्यतः दो है :

  1. हाथ-कता सूत मिलमें तैयार सतके मकाबलेमें नहीं टिक सकता। क्योंकि अबतक तो वह मिलके सूतके समान मजबूत कभी नहीं पाया गया।
  2. चरखेपर इतना कम सूत निकलता है कि वह लाभदायक नहीं हो पाता।

जो लोग वर्षोंसे खादी पहनते आ रहे हैं, उनका कहना तो यह है कि अगर खादी अच्छे हाथ-कते सूतकी बनी हो तो यह बराबर उतने ही नम्बरसे मिलके सूतसे बने कपड़े की अपेक्षा अधिक टिकाऊ होती है। उदाहरणके लिए कुछ आन्ध्रवासी भाइयोंने मझे बताया है कि उनकी धोतियाँ चार-चार सालतक, बल्कि इससे भी ज्यादा चली है, जब कि मिल-कते सुतसे बनी धोतियाँ साल-भरके अन्दर ही फट जाती हैं। लेकिन, मैं जो बात कहना चाहता हूँ वह यह नहीं कि हाथ-कते सूतसे बुना कपड़ा ज्यादा टिकाऊ होता है। मैं तो यह कहना चाहता हूँ कि चूंकि भारतकी विशाल कृषक आबादीके लिए, जो देशकी कुल आबादीका ८५ प्रतिशत है, सिर्फ हाथ-कताई ही सहायक धन्धा हो सकती है। इसलिए हम अपने देशके लिए कपड़ेकी जो भी व्यवस्था करें वह इस बातका खयाल रखते हुए करें कि इस जरूरतको हाथकते सूतसे ही पूरा करना है। इसलिए हमें अपनी शक्ति चाहे जहाँ और जिस तरह कता हुआ, बढ़िया और सस्ता सूत प्राप्त करने में नहीं, बल्कि सस्तेसे-सस्ता और अच्छेसे-अच्छा हाथ-कता सूत प्राप्त करनेमें लगानी चाहिए। अगर मेरी बात ठीक हो तो देशके तमाम उद्योग विभागोंमें चरखेको अपनी प्रवृत्तियोंका केन्द्र मानकर चलाया जाना चाहिए। इसलिए, उद्योग विभागोंको चरखेकी उत्पादन-क्षमता बढ़ानेके लिए उसमें उपयुक्त सुधार करना चाहिए। उन्हें सिर्फ हाथ-कता सूत ही खरीदना चाहिए, जिससे हाथ-कताईको सहज ही उत्तेजन मिले। उन्हें हर किस्मके हाथ-कते सूतका उपयोग करनेका उपाय ढूँढना चाहिए। उन्हें सबसे अच्छा और बारीक सूत कातनेवालोंको पुरस्कार देनेकी व्यवस्था