पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/३४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३११
बिहारके अनुभव—१

करनी चाहिए। उन्हें अच्छा हाथ-कता सूत प्राप्त करनेके लिए जो कुछ सम्भव हो वह सभी करना चाहिए। इसका मतलब यह नहीं है कि हाथ-बुनाईको कम उत्तेजन दिया जाये। इसका मतलब तो सिर्फ यह है कि हाथ-बुनाई और हाथ-कताई दोनों को और भी उत्तेजन दिया जाये तथा इस तरह उन लोगोंकी सेवा की जाये, जो सबसे ज्यादा जरूरतमन्द है।

आपत्ति है कि हाथ-कताई लाभदायक काम नहीं है, किन्तु जिन लोगोंके पास काफी अवकाश है और जिनके लिए आयमें एक पैसे की वृद्धिका भी बड़ा महत्त्व है, उनके लिए तो यह लाभदायक है ही। अगर करोड़ों किसानोंको वर्षमें कमसे-कम चार महीने मजबूरन बेकार बैठे रहना नहीं पड़े तब तो पूरा चरखा-कार्यक्रम एक निरर्थक चीज है। जहाँ-जहाँ खादी कार्यकर्तागण निष्काम भावसे अपना काम करते रहे हैं वहाँ हाथ-कताईन केवल लाभदायक साबित हई है, बल्कि ग्रामवासियोंको उनके सूतके खरीदार मिल जानेसे, उनके लिए यह वरदान-रूप सिद्ध हुई है। जिन लोगोंकी मासिक आय सिर्फ-पाँच-छः रुपये है और जिनके पास समय है, वे उस कामको दौड़कर करेंगे जो उनकी आयमें प्रतिमास दो रुपये की वृद्धि कर सकता है।

मलखाचक और दूसरे केन्द्र

मेरे सामने एक रिपोर्ट पड़ी हुई है, जिसमें स्वयंसेवकोंके एक दल द्वारा बिहारके कई स्थानोंमें किये गये कामका विवरण दिया गया है। उद्योग शाला देखने के बाद मैं मलखाचकमें उनका केन्द्र देखने गया। यह स्थान पटनासे लगभग बारह मील दूर है। सिर्फ मलखाचकमें ही, जहाँ की आबादी लगभग एक हजार है, चार सौ चरखे चलते हैं और तीस बुनकर हाथ-कते सूतसे कपड़ा बुनते हैं। मैंने कुछ बहनोंको अपना-अपना चरखा चलाते हुए भी देखा। चरखे ठीकसे बने हुए नहीं थे। फिर भी कातनेवाले लोग उनसे सन्तुष्ट थे। उन्हें प्रतिमास औसतन दो रुपये मिल जाते हैं। एक हजारकी आबादी वाले गांवके लिए आठ सौ रुपये की अतिरिक्त मासिक आयको हर हालतमें अच्छी आय ही माना जायेगा। इनके अलावा बनकर लोग भी प्रतिमास प्रतिव्यक्ति पन्द्रह रुपये कमा लेते हैं, जो उक्त राशिमें शामिल नहीं है। हो सकता है, वे पहले भी इतना कमा लेते हों। कताई-कार्यका संगठन करने के साथ-साथ ये कार्यकर्त्ता अपने सीमित साधनों और उससे भी सीमित डाक्टरी ज्ञानके बलपर ग्रामवासियोंको इलाजकी जितनी सुविधा दे सकते हैं, दे रहे हैं। उन्होंने अपना काम १९२१ में प्रारम्भ किया था। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि आज वे छः केन्द्रोंमें—अर्थात् मलखाचकके अलावा मधुबनी, कपासिया, शकरी, मधेपुरी और पुपरीमें—काम कर रहे है। १९२२ में उन्होंने ६२,००० रुपयेकी खादी तैयार की, १९२३ में ८४,००० रुपये की और १९२४ में ६३,००० रुपयेकी। और इस वर्षके गत नौ महीने में वे एक लाख रुपये की खादी बुन चुके हैं। १९२४ में वे रुईकी कमीके कारण अधिक नहीं बन पाये। रिपोर्टमें कहा गया है कि अगर उन्हें नियमित रूपसे रुई मिलती रहे और यह भरोसा रहे कि उनका माल बिक जायेगा, तो उनकी विस्तारकी क्षमता लगभग अपरिमित है। उनका खयाल है कि आसपासके लगभग सभी गाँव चाहेंगे कि ये कार्यकर्त्ता वहाँ जाकर काम करें। उनकी तैयार की हुई