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१६९. यूरोपवालोंसे

जब एक ओर मैं अपनी लघुता और सीमाओंके बारेमें और दूसरी ओर लोग मुझसे जो अपेक्षाएँ रखते है उनके बारेमें सोचता हूँ तो घबरा जाता हूँ। किन्तु तत्काल ही यह ख्याल आता है कि वैसे तो मै भी सत्प्रवृत्तियों और दुष्प्रवृत्तियोंका एक विचित्र मिश्रण-मात्र हूँ। लेकिन मुझमें सत्य और अहिंसा, ये दो गुण, चाहे जितने भी अपूर्ण रूपमें हों किन्तु अन्य लोगोंकी अपेक्षा अधिक मूर्तिमन्त हुए हैं; और तब मैं प्रकृतिस्थ हो जाता हूँ और मेरे सामने यह रहस्य स्पष्ट हो जाता है कि इन अपेक्षाओंके भीतरसे मेरा नहीं बल्कि उन दो अमूल्य गुणोंका सम्मान झलकता है। अतएव, मुझे पाश्चात्य संसारके सत्यान्वेषी भाइयोंकी, जो भी सहायता मैं कर सकता हूँ, करनेसे जी नहीं चुराना चाहिए।

अमेरिकासे आये हए एक पत्रका उत्तर में दे चकाह। जर्मनीसे प्राप्त एक दुसरा पत्र मेरे सामने है। पत्र तर्कपुष्ट है। लगभग एक महीने से यह मेरे पास है। पहले मैने सोचा था कि इसका निजी उत्तर दे दूं और यदि पत्र-लेखक चाहें तो जर्मनीमें उसे प्रकाशित करायें। किन्तु दोबारा पढ़नेपर मैंने यही फैसला किया कि 'यंग इंडिया' के स्तम्भोंमें ही उत्तर दिया जाये। पत्र नीचे पूराका-पूरा दे रहा हूँ।[१]

आजकल मैं दौरेपर हूँ, इसलिए 'यंग इंडिया' की फाइल मेरे साथ नहीं है। परन्तु अपने इस कथनकी कि "सत्याग्रह पूर्ण अहिंसाकी अपेक्षा रखता है और किसी स्त्रीको बलात्कारका खतरा रहते हुए भी हिंसाका अवलम्बन करके अपनी रक्षा न करनी चाहिए" पुष्टि करनेमें मुझे कोई कठिनाई नहीं है। ये दोनों ही बातें आदर्श स्थितिसे सम्बन्धित है और इसलिए ये उन्हीं स्त्रियों और पुरुषोंको ध्यानमें रखकर कही गई हैं, जिन्होंने अपने आपको इतना शुद्ध बना लिया है कि उनके अन्दर द्वेष, क्रोध या हिंसाका लेश भी नहीं रह गया हो। इसका मतलब यह नहीं है कि हमारी कल्पनाकी वह आदर्श सत्याग्रही स्त्री चुपचाप अपने ऊपर बलात्कार होने देगी। अव्वल तो ऐसी स्त्रीको कभी बलात्कारका भय रहेगा ही नहीं, और दूसरे, यदि रहेगा भी तो वह हिंसाका अवलम्बन किये बिना उस दुष्टसे अपनी इज्जतकी पूरी-पूरी रक्षा कर सकेगी।

लेकिन, मैं यहाँ छोटी-छोटी तफसीलोंपर विचार नहीं करूँगा। ऐसी स्त्रियाँ भी, जो हिंसाके द्वारा अपनी रक्षा कर सकें, बहुत नहीं है। और खुशीकी बात है कि ऐसे पाशविक आक्रमणोंकी घटनाएँ भी बहुतेरी नहीं होती। जो भी हो, मेरा तो इस सिद्धान्तमें सोलहों आना विश्वास है कि पूर्ण शुद्धता अपनी रक्षा आप ही कर लेती है। तेजोमय पवित्रताके सामने दुष्टसे-दुष्ट व्यक्ति भी कुछ समयके लिए तो नम्र हो जाता है।

 
  1. पत्रके पाठके लिए देखिए परिशिष्ट ३।