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लोग ही है। इसमें काम करनेकी शर्तें तो कठिन होंगी ही। ऐसे लोगोंको सारा समय देनेवाले खादी-कार्यकर्त्ताओंके रूपमें नहीं रखा जा सकता, जो खुद अपने हाथसे न कातते हों, अथवा हमेशा खादी न पहनते हों। यदि उपयुक्त ढंगके बहुत-से नेक मुसलमान अपनी सेवाएँ अर्पित करें, तो मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी। वे सभी मौलाना साहबको अर्जी भेजें। उन्होंने प्रत्येककी अर्जीकी जाँच करके संघमें उसके लिए सिफारिश करनेका काम खुद अपने हाथमें ले रखा है। पर मैं सभी सम्बन्धित लोगोंको चाहे वे मुसलमान हों या ईसाई, पारसी हों या यहूदी समय रहते सचेत कर देता हूँ कि यदि उनके प्रयत्न, योग्यता और खादी-प्रेमके अभावमें खादी-कार्य सिर्फ हिन्दुओंका बनकर रह जाय तो फिर इसके लिए वे परिषद्को दोष न दें।

बिना लिखा-पढ़ीका कर्ज

कुछ समय पूर्व मैंने 'नवजीवन' के पृष्ठोंमें इस बातका उल्लेख किया था[१] कि गुजरातके कुछ कांग्रेसी कर्जदारोंने कर्ज अदा नहीं किया और अब अखिल भारतीय चरखा संघका भार अपने सिर लेते ही मुझे जो सबसे पहला उपहार मिला है, वह है—श्री बैंकर द्वारा भेजी गई बिहार प्रान्तीय खादी निकायके ७० कर्जदारोंकी एक सूची। ये कर्ज कांग्रेसियोंने लिये है और ये सब बहुत दिनोंसे बकाया ही चले आ रहे हैं। इनमें से बहुतसे कर्जदार ऐसे हैं जिन्होंने खादी बेची, लेकिन उसका पैसा निकायको नहीं दिया। कुल कर्जकी राशि २०,००० रु॰ से अधिक है। यह बहुत शर्म और दुःखकी बात है कि इतने कर्जोंका भुगतान नहीं हो पाया है। मेरे विचारमें खादी निकाय हदसे ज्यादा उदार रहा है। सभी सार्वजनिक संस्थाएँ सार्वजनिक न्यास हैं। इसलिए उनके प्रबन्धकोंके लिए अक्सर यह जरूरी हो जाता है कि वे अपने हृदयको कठोर बनाकर अपने अधीनस्थ न्यासोंके कर्जोंको कड़ाईके साथ वसूल करें। सार्वजनिक न्यासके प्रबन्धमें उदारता बरतना उदारताका दुरुपयोग करना है, और इसके परिणामस्वरूप अक्सर ऐसी गलतियाँ हो जानेकी सम्भावना रहती है, जो अक्षम्य है। मैं जानता हूँ कि असहयोगकी झूठी भावना अक्सर कर्ज न चुकानेवाले कर्जदारोंके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के आड़े आई है। किन्तु जैसा कि मैंने कई बार बताया है, कोई संस्था अपने नियम-कानून अपनी रक्षाके लिए ही बनाती है, आत्मविनाशके लिए नहीं। इसलिए जब उसके नियम उसकी उन्नतिके मार्गमें बाधक हो जाते हैं तब वे बेकार ही नहीं, बल्कि इससे भी बदतर बन जाते हैं। उस हालतमें उनकी कोई परवाह न करना ही उचित है। अदालतोंका बहिष्कार झूठ और जालसाजीको बढ़ावा देनेके लिए और अपराधियोंके अपराध छिपानेके लिए नहीं, बल्कि राष्ट्रमें नई शक्ति और स्फूर्ति भरने के लिए, लोगोंको छोटी-छोटी बातोंपर अदालतोंमें पहुँच जानेसे रोकनेके लिए, पंच-फैसलेको लोकप्रिय बनानेके लिए शुरू किया गया था। इसे ऐसा मानकर शुरू किया गया था कि कांग्रेसी लोग अदालत तो क्या, पंच-फैसलेका भी सहारा लिये बिना कमसे-कम एक-दूसरेके प्रति और कांग्रेस संस्थाके प्रति अपने

 
  1. देखिए खण्ड २७, पृष्ठ ४०७–८।

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