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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और कब प्राण भय मोल लेकर भी उसका प्रतिरोध करना चाहिए, तो हम एक क्षणमें स्वतन्त्र हो जायेंगे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ८–१०–१९२५
 

१७२. सन्देश 'फॉरवर्ड 'को

किशनगंज
१० अक्तूबर, १९२५

'फॉरवर्ड' के लिए मै दीर्घजीवनकी कामना करता हूँ। सुभाष बोस-जैसे नौजवानोंको न्यायालयमें उचित सुनवाईके अधिकारसे वंचित रखकर, जितने अधिक दिन बन्दी बनाकर रखा जायेगा, हम उतनी ही तेजीसे अपने लक्ष्यकी ओर अग्रसर होंगे। आजादीकी लड़ाई कोई मखौल नहीं है। वह इतनी सच्ची और इतनी कठिन है कि उसके लिए हममें से हजारों अच्छेसे-अच्छे व्यक्ति दरकार होंगे। यह कीमत चुकाते हुए हमें पीछे नहीं हटना चाहिए।

मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी प्रति (जी॰ एन॰ ८०५०) की फोटो-नकलसे।

 

१७३. पत्र : रमणीकलालको

शनिवार, १० अक्तूबर, १९२५

भाईश्री रमणीकलाल,

तुम्हारी स्कूल सम्बन्धी रिपोर्टको[१] मैने आज काठियावाड़ जानेवाली ट्रेनमें दिलचस्पीसे पढ़ा। अभी ट्रेन खड़ी है और लोग मुझे देख रहे हैं। पर इसकी परवाह किए बिना मैं तुम्हें यह पत्र लिख रहा हूँ।

तुम्हारे विवरणमें शिक्षकोंमें हुए परिवर्तन उभर कर सामने आये हैं। लेकिन कौन-सा परिवर्तन रोका जा सकता था—यह कहना मुश्किल है। यदि सम्भव हो तो हमें आज भी इसका हल खोजना चाहिए।

काकाके[२] दुःखसे मुझे दुःख होता है। अब तो काका शरीर सुधारते-सुधारते यदि दुःखको भी भूल जायें तो कितना अच्छा हो! गीताभ्यासीको दुःख क्या और सुख क्या? लेकिन यह ज्ञान कौन दे सकता है? यह तो अनुभवसे ही आयेगा।

 
  1. सम्वत् १९८०–८१ के लिए आश्रम स्कूलकी रिपोर्ट।
  2. काका कालेलकर।