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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


प्रश्नकर्त्ताने जिन श्लोकोंका उल्लेख किया है उनका रहस्य यदि अब भी उनकी समझमें न आये तो मैं समझाने में असमर्थ हूँ, सर्वशक्तिमान ईश्वर कर्त्ता, भर्ता और संहर्ता है, और उसे ऐसा ही होना चाहिए। इस विषय में तो कोई शंका उत्पन्न न होगी। जो उत्पन्न करता है वह उसका नाश करने का अधिकार भी अपने पास रखता है। फिर भी वह किसीको नहीं मारता, क्योंकि वह अकर्त्ता है, वह कुछ भी नहीं करता। नियम यह है कि जिसने जन्म लिया है मरने के लिए जन्म लिया है। ईश्वर भी इस नियमको नहीं तोड़ता। यह उसकी दया है। यदि ईश्वर ही स्वच्छन्द और स्वेच्छाचारी बन जाये तो हम सब कहाँ जायेंगे?

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ११–१०–१९२५
 

१७६. पत्र : डाह्याभाई म॰ पटेलको

रविवार
[११ अक्तूबर, १९२५][१]

भाई डाह्याभाई,

तुम्हारा पत्र आज ही पढ़ पाया हूँ। इसका तो यह तात्पर्य हुआ कि खादीका जस तरहसे गुजरातमें चला सो ठीक नहीं चला; चरखेकी मार्फत गांवोंमें प्रवेश नहीं किया जा सकता, सेवक नाम-मात्रके हैं और मैंने डा॰ सुमन्तकी[२] बातको केवल तर्कोंके बलपर उड़ा दिया है।

मैं मानता हूँ कि गुजरातमें खादी कार्य में सुधारकी गुंजाइश थी। परन्तु जहाँ कार्यकर्त्ता सब अनुभवहीन थे, वहाँ किसे दोष दिया जा सकता है? भूल किसीने जानबूझकर नहीं की।

हम सही अर्थोंमें केवल चरखेके द्वारा ही गांवों में प्रवेश कर सकेंगे, मेरी यह मान्यता मिट नहीं सकती। जहाँ लोग भूखसे पीड़ित हैं, वहाँ एक यही साधन है। जहाँ लोग सुखी परन्तु आलसी है वहाँ भी उनका आलस्य दूर करनेका साधन यही है। अभी पूरी सफलता नहीं मिली, इसका कारण यही है कि बहुत कम व्यक्ति इसपर विश्वास रखकर गाँवोंमें बैठें हैं।

गुजरातमें जो लोग सेवाकार्य में लगे हैं वे केवल नाम-भरके नहीं हैं। यदि तुम्हारा आक्षेप लक्ष्मीदासपर[३] है तो तुम उसे जानते नहीं। उसने अपने साथ अपनी पत्नी और बच्चीको भी होम दिया है। किस आश्रममें लाखों रुपये स्वाहा कर दिये गये हैं?

 
  1. डाककी मुहर १२–१०–१९२५ है।
  2. डा॰ सुमन्त मेहता जिन्होंने सुझाव दिया था कि स्वयंसेवकोंको समाजमें विधिपूर्वक शिक्षा दी जानी चाहिए।
  3. लक्ष्मीदास आसर।