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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


आयोजन मन्दिरके ठीक सामनेके विशाल प्रांगणमें किया गया था। देवघरमें जहाँ-कहीं भी मैं गया, सर्वत्र उन पण्डा स्वयंसेवकोंने ऐसी सुव्यवस्था बना रखी थी जैसी अन्यत्र कहीं देखनेको नहीं मिली।

कष्ट-सहनका पुण्य

सार्वजनिक सभा बहुत अच्छी तरह आयोजित की गई थी। वहाँ पूर्ण शान्ति थी। जनताके मानपत्र में जिलेके निवासियोंको १९२१-२२ में जो घोर यातनाएँ सहनी पड़ी थीं, उनका स्पष्ट उल्लेख था। यहाँ यह बात ध्यान रहे कि यह जिला संथाल परगना कहलाता है। यह बिहारका ऐसा इलाका है, जहाँ विधानके नियम नहीं लागू होते इसलिए कमिश्नरकी मर्जी ही यहाँका कानून है। मानपत्रमें यह भी कहा गया था कि जहाँ १९२१-२२ में संथालोंके बीच मद्यपानकी आदत करीब-करीब खत्म हो गई थी, वहाँ अब फिरसे बढ़ रही है। खादी प्रचारकी यहाँ काफी गुंजाइश बताई गई। अपने उत्तरमें मैंने कहा कि आजतक कोई भी राष्ट्र काफी कष्ट-सहनके बिना अपना स्वत्व प्राप्त नहीं कर सका है। इसलिए १९२१-२२ में लोगोंको जो कष्ट सहने पड़े, उसकी मुझे चिन्ता नहीं है। हाँ, कष्ट-सहन लाभदायक हो, इसके लिए जरूरी है कि कष्टोंको स्वेच्छासे और आनन्दके साथ सहना चाहिए। जब लोग इस तरह स्वेच्छासे हँसते-हँसते कष्ट सहते हैं, तो अन्तमें यह उनके लिए शक्तिदायी और सुखकर साबित होता है। इसलिए मुझे यह जानकर दुःख हुआ है कि इस जिलेकी जनताको जो कष्ट सहना पड़ा, उससे उसमें अनुत्साह आ गया है। इससे तो यही लगता है कि वह सारा कष्ट स्वेच्छासे और खुशी-खुशी नहीं सहा गया था। अब यह काम कार्यकर्त्ताओंका है कि वे विशुद्ध एवं स्वेच्छाया कष्ट-सहनका उदाहरण पेश करें। संथालोंमें मद्यपानके विरुद्ध बराबर आन्दोलन चलाना चाहिए और चरखेका कार्य विधिवत् संगठित किया जाना चाहिए।

दो तस्वीरें

नगरपालिकाकी ओरसे भी अलगसे एक मानपत्र भेंट किया था। मैं इस घटनाका उल्लेख विशेष रूपसे इसलिए कर रहा हूँ कि इस समारोहका आयोजन खुले मैदानमें बहुत ही सुरुचिपूर्ण, किन्तु आडम्बरहीन तरीकेसे किया गया था। जाहिर था कि उपस्थित लोग टिकट खरीदकर आये थे और उनकी संख्या इतनी कम थी कि किसी बड़ी इमारतमें भी उन सबको बैठानेकी व्यवस्था बड़ी आसानीसे की जा सकती थी। लेकिन नगरपालिकाने एक सुन्दर प्राकृतिक दृश्यावलीके बीच एक छोटा पण्डाल खड़ा कर दिया था, जिसे फूल-पत्तियोंसे सुरुचिपूर्ण ढंगसे सजाया गया था। इसलिए नगरपालिकाके मानपत्रका उत्तर देते समय मै मन्दिरको जानेवाली गन्दी सड़क और उसके आसपासके मलबेकी चर्चा किये बिना न रह सका। मैं भारतके लगभग सभी तीर्थस्थलोंमें गया हूँ। हर जगह मन्दिरोंके अन्दर और बाहरकी दशा शोचनीय है। अव्यवस्था, गन्दगी, शोर-गुल और दुर्गन्ध, हर जगह यही देखने को मिलता है। देवघरमें यह सब शायद और स्थानोंसे कम है। लेकिन फिर भी मन्दिरके परिवेश और जहाँ