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बिहारके अनुभव—२

मानपत्र भेंट किया गया था, उस स्थानकी स्थितिमें जो अन्तर था, उसे देखकर बड़ा दुःख हुआ। यदि नगरपालिका, पण्डे और तीर्थयात्री साथ मिलकर काम करें तो वे मन्दिर और उसके अहातेको, जैसा कि उसे होना चाहिये, सुन्दर, सुवासित और दर्शनार्थियोंके मनपर पावन प्रभाव डालनेवाला बना सकते हैं। मैंने उनसे कहा कि यदि ऐसी व्यवस्था कर दी जाये जिससे मन्दिरका प्रबन्ध ठीक-ठीक और ईमानदारीके साथ किया जा सके तो मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं कि अमीर तीर्थयात्री ऐसे तीर्थस्थानोंपर मिलनेवाली सुख-सुविधाके लिए खुशी-खुशी धन देंगे।

निरर्थक और असुन्दर

देवघरसे हम खड़गडीहाके लिए चल पड़ें। रास्तेमें गिरीडीह पड़ता है, जहाँसे खड़गडीहा पहुँचने के लिए मोटरसे २६ मीलका फासला तय करना पड़ता है। यहाँ कार्यक्रम स्त्रियोंकी सभासे[१] आरम्भ हुआ। सभाओंमें मुझे कुछ ऐसी महिलाएँ भी देखने को मिलती है, जो भारी-भरकम गहने पहने होती है। यह चीज मुझे अकसर बहुत अखरी है, फिर भी अबतक मैं इनके खिलाफ कुछ कहनेसे अपने-आपको रोके रहा हैं। लेकिन यहाँ तो जब मन उन्हें कलाईसे लेकर लगभग कोहनीतक चूड़ियाँ पहन और नाकोंमें लगभग तीन-तीन इंच व्यासवाली ऐसी बड़ी-बड़ी और मोटी-मोटी नथें पहने देखा, जिन्हें बड़ी मुश्किलसे दो छेदोंमें लटका रखा गया था, तो मुझसे सहा नहीं गया। मैंने नम्रताके साथ कहा कि इन भारी आभूषणोंसे व्यक्तिके सौन्दर्यमें कोई वृद्धि नहीं होती, बल्कि इससे काफी तकलीफ होती है। कई बार बीमारियाँ भी हो जाती है, और मैं साफ देख रहा हूँ कि ये मैलके तो घर ही है। मैंने लोगोंको इतने अधिक आभूषण पहने अन्यत्र कहीं नहीं देखा था। लोगोंको इससे भारी आभूषण पहने मैंने जरूर देखा है—जैसे काठियावाड़की स्त्रियोंके पैरोंके भारी कड़े, जिन्हें मैं छल्ले नहीं कह सकता—लेकिन कभी भी शरीरका इतना अधिक भाग चूड़ियों और न जाने किस-किस जेवरसे लदा नहीं देखा। मुझे बताया गया कि इतनी बड़ी नथोंसे कई बार नाककी नाजुक झिल्ली कट जाती है। मैं कुछ घबरा-सा रहा था कि महिला श्रोताओंपर मेरी इन सीधी बातोंका जाने क्या असर होगा। इसलिए मेरा भाषण समाप्त होनेपर जब देशबन्धु स्मारक कोषके लिए मेरी अपीलके उत्तरमें वे मेरे चारों ओर घिर आई और उन्होंने खुले हाथ दान दिया, तो मुझे बड़ी राहत मिली। अपना आशय दान देनेवाली हर महिलाको अलग-अलग समझाया और उससे कहा कि वह अपने बहुत सारे

वाहियात आभूषणोंको त्याग दे। उन्होंने बड़ी शालीनताके साथ मुस्कराते हुए मेरी बातें सहर्ष सुनीं और कुछने तो अपने कई गहने भी मुझे दिये। मैं नहीं जानता कि आभूषणोंकी मात्रा या प्रकारका व्यक्तिके चारित्रिक विकाससे कोई सम्बन्ध है या नहीं। लेकिन विवेकसे इसका कुछ सम्बन्ध जरूर है, यह बात अनेक दृष्टान्तोंसे प्रमाणित की जा सकती है। यह भी स्पष्ट है कि इनका संस्कृतिसे, जहाँतक वह चरित्रसे एक अलग चीज है, कुछ सम्बन्ध है। किन्तु चूंकि

 
  1. देखिए "भाषण : गिरीडीहकी महिला सभामें", ७–१०–१९२५।