पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/३७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३४०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं चरित्रको संस्कृतिसे भी अधिक महत्त्व देता हूँ, इसलिए स्वभावतः मेरे मनमें एक प्रश्न उठता है कि भारतके विभिन्न भागोंमें मुझे जो हजारों स्त्रियोंके सामने बोलनेका अवसर मिलता रहता है, उसका उपयोग सजने-सँवरनेके सुधारके पक्ष-समर्थनके लिए करना क्या मेरे लिये उचित होगा। जो भी हो, इन सीधी-सादी स्त्रियोंके माता-पिताओं और पतियोंसे में यह समझनेका अनुरोध करूँगा कि स्वास्थ्य और मितव्ययिताकी दृष्टिसे यह जरूरी है कि वे उन्हें शरीरको अलंकृत करनेके साधनोंमें काफी कमी करनेके लिए प्रेरित करें।

माहुरी

यहींपर माहुरियोंसे, जिन्हें माथुरी भी कहते हैं, मेरा परिचय हुआ। वे वैश्य जातिके है और कहते हैं, पीढ़ियों पहले मथुरा और उसके आसपासके इलाकेसे बिहारमें जाकर बस गये थे। वे अच्छे खाते-पीते और उद्यमी लोग हैं। उनका मुख्य धन्धा व्यापार है। उनमें कुछ लोग तो कट्टर सुधारक भी हैं। उन्होंने खादीको अपना लिया है और वे अच्छी तरह समझते हैं कि गरीबोंके लिए वह कितनी लाभदायक है। उनमें से अछूतोंने माँसाहार और मदिरापान छोड़ दिया है। उन्होंने अपने अभिनन्दन-पत्रमें कहा कि वे असहयोग आन्दोलनको विशुद्ध रूपसे आत्मशुद्धिका प्रयत्न मानते हैं और उसने उनके आन्तरिक जीवनमें क्रान्ति ला दी है। वे राजनीतिमें कोई हिस्सा नहीं लेते। लेकिन वे अपनी छोटी-सी जातिमें सब प्रकारके सुधार करनेको कटिबद्ध है। हिन्दुस्तानभरके इतने सारे लोगोंपर असहयोग आन्दोलनका यह जो नैतिक असर पड़ा है, वह शायद उसका सबसे अधिक स्थायी परिणाम है। उसके ऐसे बड़े-बड़े सुपरिणाम निकल सकते हैं, जिनका अभीतक हमें ठीक अनुमान भी नहीं हो सकता। मुझे बताया गया कि संथाल जातिमें भी ऐसे ही सुधार हुए हैं। बहुत-से पियक्कड़ संथाल लोग अब शराबको छूतेतक नहीं हैं। धरना देना बन्द होनेपर उनके बीच इस सुधारमें कुछ व्याघात पड़ गया लेकिन अब वह आन्दोलन फिर चल पड़ा है और १९२१ में उसमें जो हिंसाका तत्त्व आ गया था, इस बार वह उससे मुक्त है। यदि संथालों जैसी सीधीसादी किन्तु अज्ञान जातियोंकी शराबखोरीकी लत छुड़ाई जा सके तो यह उनके लिए जीवनदानके समान होगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १५–१०–१९२५