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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दलमें हों, बन्दनीय हैं। सबको अपने स्वतन्त्र विचार रखनेका अधिकार है। यह अधिकार रक्षणीय है।

कांग्रेसके द्वार किसीके लिए जबरन बन्द नहीं रखे जा सकते। जबतक हम शिक्षित वर्गमें खादी और चरखके सामर्थ्यपर विश्वास उत्पन्न नहीं कर पाते, तबतक चरखेको प्रमुख स्थान मिल ही नहीं सकता। मेरा लिहाज करके या मुझे कांग्रेसमें बनाये रखनेके लिए चरखेको स्थान देना निरर्थक है। चरखेको स्थान देना तो तभी शोभा दे सकता है जब उसपर शिक्षित वर्गकी श्रद्धा हो अथवा वह वर्ग चरखावादियोंको स्थान देना चाहता हो। स्वराज्यवादी दलके सदस्योंकी सभामें किसीने चरखेको हटानेका विचार तो नहीं किया है। यदि वे हटाना चाहते तो भी मैं उसपर सहमत होनेके लिए तैयार था; परन्तु वे लोग तो इस बातको सुनने तकके लिए तैयार न थे। उन्हें इस बातपर पूरा सन्तोष था कि जो लोग न कातें वे पैसा दें। खादी पहननेकी शर्तको भी निकालनेके लिए वे तैयार नहीं थे। यदि स्वराज्यवादी स्वतन्त्र रूपसे इस हदतक भी सोचते हों तो मैं इसे खादीकी बहुत बड़ी उन्नति मानता हूँ।

स्वराज्यवादी और अपरिवर्तनवादी, इन शब्दोंका प्रयोग ही बन्द हो जाना चाहिए। विधानसभाओंमें जानेवालोंकी संख्या हमेशा बहत कम रहेगी। सभी लोग तो उनमें जा नहीं सकते। इसलिए उसका विरोध करनेका कोई कारण मुझे इस समय दिखाई नहीं देता। यदि विधानसभाओंमें न जानेवाले लोग यहाँ बाहर अपने कामसे सविनय अवज्ञाका वातावरण तैयार कर सकें तो वे [स्वराज्यवादी अपनेआप वहाँसे निकल आयेंगे या फिर विधानसभाओंमें रहकर ही यथाशक्ति मदद करेंगे। और अगर वे सविनय अवज्ञाकी मुखालिफत करेंगे तो हमें उनका विरोध करना पड़ेगा। परन्तु स्वराज्यवादी सविनय अवज्ञाका विरोध करेंगे, इसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकता। सविनय अवज्ञाका रहस्य समझनेवाले लोग तो चौबीसों घंटे चरखका ही गणगान करेंगे। इसीसे मैंने यह सुझाव दिया है कि जो स्थान आज स्वराज्यवादी दलको प्राप्त है वही चरखेको मिले, अर्थात् कांग्रेसकी छत्रछाया में एक चरखा संघ स्थापित हो, जिसका कार्य हो केवल चरखे और खादीका प्रचार करना। सदस्यताका सूत भी वही संघ एकत्र करे और अपने पास रखे। यह संघ अपना स्वतन्त्र विधान बनाये। यदि इस तरह कार्य हो तो दोनों प्रवृत्तियाँ एक-दूसरेसे टकराये बिना चलेंगी और एक-दूसरेकी सहायक होंगी। :

[गजरातीसे]
नवजीवन, २–८–१९२५