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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

सर्वोत्तम सहायक धन्धा

एक भाईने मुझे कीटिंगकी पुस्तक 'एग्रिकलचरल प्रोग्नेस इन वेस्टर्न इंडिया' ('पश्चिमी भारतमें कृषिकी प्रगति') से निम्नलिखित उद्धरण भेजा हैं :

इस बातके लिए प्रयत्न किये गये हैं कि किसान लोग हाथसे सूत कातने-जैसे कुछ ऐसे काम अपनायें, जिनके लिए किसी विशेष प्रशिक्षण या कुशलताकी जरूरत नहीं होती। किन्तु, कताई मिलोंको कार्य-क्षमताको देखते हुए, ऐसे कार्योंको आर्थिक दृष्टिसे उचित बतानेका कारण सिर्फ यह मान्यता ही हो सकती है कि आजकल किसान लोग अपना इतना ज्यादा समय व्यर्थ गँवा देते हैं कि वे चाहे जितना भी कम पैसा देनेवाला काम करें, वह कुछ न करनेसे तो बेहतर ही होगा। दुर्भाग्यवश बहतसे किसानोंके सम्बन्धमें जो तथ्य हमारे सामने मौजूद हैं, उनको देखते हुए ऐसा मान लेना ठीक ही लगता है। किन्तु इसी कारण किसानोंको ऐसी कठिन, विषम और स्पर्धाकी स्थितिमें डालनेवाले सुझावको तो हताश मनका ही सुझाव माना जायेगा। किसानोंके लिए सर्वोत्तम सहायक धन्धा पशुधनको बढ़ाना और पशु-पालन ही होना चाहिए। इससे उन्हें सभी मौसमोंमें धन्धा मिल जाता है और आमदनी होती है, एवं खेतमें डालनेके लिए खाद उपलब्ध हो जाती है, जो जमीन की उर्वरा-शक्तिको ठीक रखने के लिए आवश्यक है।

यह सवाल इस दृष्टिसे बड़ा महत्त्वपूर्ण है कि इसमें दो बातोंको स्पष्ट रूपसे स्वीकार किया गया है। एक बात यह है कि भारतके बहुत-से किसानोंका बहुत-सा समय बर्बाद होता है और दूसरी बात यह है कि उस समयमें उनको चाहे जितना कम पैसा देनेवाला धन्धा मिल जाये, वह कुछ न करनेसे तो बेहतर ही है। फिर भी, लेखक हाथ-कताईके पक्षमें नहीं है, क्योंकि मिलें अच्छा और ज्यादा सूत कातती हैं। जरा ध्यानसे देखनेपर स्पष्ट हो जायेगा कि यह दलील गलत है। किसानोंको अपने घरपर तो अच्छा सुत कातनेवाली मिलोंसे स्पर्धा नहीं करनी है। उनको जिस चीजसे स्पर्धा करनी है वह है मिलोंके बने माँड़ी लगे झिरझिरे कपड़े के प्रति उनमें उत्पन्न नई रुचि। यदि वे अपने भीतर इस पुरानी रुचिको फिरसे जगा लें, सादी किन्तु मुलायम और सुन्दर खादी फिर पहनने लगें तो उनको विवश होकर जो बेकारी उठानी पड़ती है, तत्काल उसका खतरा समाप्त हो जाये। अच्छे-अच्छे होटल और रोटी, बिस्कुट आदि बनाने के कारखाने करोड़ों लोगोंको कहाँ लगाते हैं? इनसे उन्हें कोई स्पर्धा नहीं करनी पड़ती है, बल्कि वे सुन्दर ढंगसे काटे-तराशे और अच्छी तरह पकाये मसालेदार बिस्कुटोंके मुकाबले अपने घरकी टेढ़ी-मेढ़ी चपातियाँ ज्यादा पसन्द करते हैं। लेखक द्वारा सुझाया गया पशु-पालनका सहायक धन्धा, निस्सन्देह, बड़ा अच्छा धन्धा है और सूत कातनेकी अपेक्षा उससे ज्यादा आमदनी तो हो ही सकती है। किन्तु इसके लिए पूँजीको आवश्यकता होती है और पशु-पालनका ज्ञान भी चाहिए, जो सामान्य किसानोंमें नहीं होता। पहलेसे बहुत तैयारी किये बिना यह झान प्राप्त नहीं हो सकता और न होगा ही। इसलिए आप इस समस्याको चाहे