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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं, बल्कि दो श्लोकों के अंशोंके मिश्रणका अनुवाद है; और मैं इस बिलकुल ठीक भूल-सुधारके लिए पत्र-लेखकका आभारी हूँ। लेकिन, उनके तर्कका सार मुझे यह जान पड़ता है कि 'गीता' के प्रसिद्ध शब्द 'यज्ञ' की मेरे भाषणकी रिपोर्ट में जैसी व्याख्या की गई है, वैसी व्याख्या करने का कोई औचित्य नहीं है। लेकिन, मैं तो अब भी यही मानना चाहता हूँ कि वह व्याख्या ठीक है, और मैं कहना चाहूँगा कि पत्र-लेखक द्वारा उद्धत 'गीता' के अध्याय ३ के श्लोक १२ और १३ में जो 'यज्ञ' शब्द आता है, उसका केवल एक ही अर्थ हो सकता है। १४ वें श्लोकसे तो यह बात बिलकुल स्पष्ट हो जाती है। उस श्लोकका अर्थ है :

सभी प्राणियोंका जीवन अन्नसे ही है; अन्न वर्षासे उत्पन्न होता है, यज्ञसे वर्षा होती है और यज्ञ कर्मसे समुद्भुत है।[१]

इसलिए मेरे विचारसे यहाँ न केवल शारीरिक श्रमके सिद्धान्तका प्रतिपादन किया गया है, बल्कि इस सिद्धान्तकी भी स्थापना की गई है कि श्रम जब मात्र अपने लिये ही नहीं, वरन् दूसरोंके लिए भी किया जाता है, तब और केवल तभी वह यज्ञरूप होता है। वर्षा महान् बौद्धिक कृतित्त्वोंसे नहीं, बल्कि सिर्फ शारीरिक श्रमसे होती है। यह एक सुसिद्ध वैज्ञानिक तथ्य है कि जहाँ जंगलोंको वृक्ष-विहीन कर दिया जाता है, वहाँ वर्षा नहीं होती, जहाँ पेड़ लगाये जाते हैं, वहाँ वर्षा खिंच आती है और वनस्पतिकी वृद्धिके साथ वर्षाके जलमें भी वृद्धि हो जाती है। प्रकृतिके नियमों की खोज अभी बाकी है। अभी तो हम सिर्फ ऊपरी सतह ही खरोंच पाये हैं। कौन है जो यह जानता हो कि शारीरिक श्रम न करने के क्या-क्या नैतिक तथा भौतिक कुपरिणाम होते हैं? लेकिन मेरी उन बातोंका कोई गलत अर्थ न लगाये। इस सबका मतलब यह नहीं कि मैं बौद्धिक श्रमके महत्त्वको कुछ कम आँकता हूँ, लेकिन चाहे जितना भी बौद्धिक श्रम किया जाये, वह शारीरिक श्रमके स्थानकी पूर्ति नहीं कर सकता। सबके सामूहिक कल्याणके लिए शारीरिक श्रम करना हमारा जन्मजात कर्त्तव्य है। इसमें सन्देह नहीं कि बौद्धिक श्रम शारीरिक श्रमसे बहुत ऊँची चीज हो सकती है और वह अक्सर ऐसा होता भी है, लेकिन जिस प्रकार बौद्धिक आहार, हम जो अन्न खाते हैं, उससे बहुत श्रेष्ठ होते हुए भी अन्नाहारका स्थान नहीं ले सकता, उसी प्रकार शारीरिक श्रमके स्थानपर बौद्धिक श्रमसे काम नहीं चलता, न चल सकता है। सच तो यह है कि धरतीको उपजके बिना बुद्धिको उपजको कल्पना ही नहीं की जा सकती।

सम्मान या अपमान?

एक कार्यकर्त्ता लिखते हैं :

मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि अधिकांश कार्यकर्त्ताओंको कांग्रेसके कोषमें से वेतन लेने में अपमान महसूस होता है, लेकिन वे लाचार है। इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप 'यंग इंडिया' में कुछ लिखकर उन्हें इसके लिए उत्साहित करें।
 
  1. यहाँ गांधीजीने आर्नोल्डका अंग्रेजी अनुवाद दिया है, और यह हिन्दी अनुवाद उसी अंग्रेजी अनुवादपर से किया गया है।