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भाषण : काशी विद्यापीठमें


अन्तमें महात्माजीने देशबन्धु कोषके लिए दान देनेकी अपील की, और कहा कि उसका उपयोग चरखके प्रचारार्थ किया जायेगा। उन्होंने भारतके पुनरुद्धारके लिए वास्तविक और ठोस काम करनेकी आवश्यकतापर जोर दिया।

[अंग्रेजीसे]
लीडर, २१-१०-१९२५
 

१८७. भाषण : काशी विद्यापीठमें

शनिवार, १७ अक्तूबर, १९२५

बाबू भगवानदास, अध्यापकगण, विद्यार्थीगण, तथा भाइयो और बहनो,

यह सच है कि इस विद्यापीठका आरम्भ मेरे हाथसे हुआ था; परन्तु विद्यापीठकी हस्ती आज भी बनी हुई है, इसका कारण एक तो है शिवप्रसादजी की उदारता और प्रेम; उसे प्रेम या मोह कहो। दूसरा कारण है श्री भगवानदासजी का प्रेम। उनकी भावनाके लिए मैं मोह शब्दका प्रयोग नहीं कर सकता क्योंकि वे कोई भी काम अपना कर्त्तव्य समझकर विवेकपूर्वक ही करते हैं। आज इन दोनोंके उत्साह-एकके बुद्धिप्रयोग और दूसरेके द्रव्य प्रयोगसे यह विद्यापीठ मौजूद है

मुझसे पूछा गया है कि क्या अब भी राष्ट्रीय विद्यापीठोंपर मेरा विश्वास है। सन् १९२१ में मैंने विद्यार्थियोंसे जो यह कहा था कि आप सरकारी पाठशालाओंसे निकल जायें, क्या वह ठीक किया था या वह मेरी गलती थी? मैं कई बार अपनी आत्मासे यह प्रश्न पूछ चुका हूँ। आप जानते हैं कि मैं गलती स्वीकार करनेको लज्जाकी बात नहीं मानता और प्रायश्चित्त करनेको भी तैयार रहता हूँ। मैं अपनी गलती जनताके सामने स्वीकार कर लेता हूँ। मैं अपनी आत्मासे अपने कामके अच्छे अथवा बुरे होने के बारेमें प्रश्न करता रहता हूँ। मेरा तजुरबा है कि उससे जो ध्वनि निकलती है, वह सच्ची होती है। मुझे पता नहीं कि कभी उस ध्वनिके सच्चे न निकलनेका मुझे अनुभव है। इस सम्बन्धमें इतने कटु अनुभव के बाद भी यही ध्वनि निकलती है कि मैं ठीक रास्तेपर था। सन् १९२१ में जो कुछ हुआ, वह योग्य ही था। विद्यापीठोंका आरम्भ करना भी ठीक था। विद्यापीठोंकी स्थापना बालक-बालिकाओंके लिए आवश्यक है। हिन्दुस्तानमें जितने विद्यापीठ स्थापित हुए उनमें से काशी, पटना, पूना और गुजरात, इन चार स्थानोंके विद्यापीठ आज भी चल रहे हैं। उत्तम रीतिसे चल रहे है यह तो नहीं कहता; परन्तु मैं चाहता हूँ कि ये चलते रहें और उन्नति करें। उन्नतिका अर्थ में यह नहीं करता कि उनमें हजार-हजार विद्यार्थी हों। मधुपुरमें एक राष्ट्रीय अध्यापकने मुझसे कहा कि विद्यार्थी नहीं मिलते। मैंने उनसे कहा कि इससे आप निराश न हों। आप अपने दिलसे पूछे; जिस सिद्धान्तपर आपने इसे चलाया है यदि आप उस सिद्धान्तपर अटल है तो एक विद्यार्थी रह जानेपर भी आप पाठशाला चलाते