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भाषण : लखनऊकी सार्वजनिक सभामें

की सड़कोंको ठीक कर देनेका, अच्छे दूधका प्रबन्ध करनेका और ऐसी जबानमें जिसे सब लोग समझ सकें काम करनेका वचन दें। अगर लखनऊके अगले बोर्डने इस प्रकार अच्छा काम कर दिखाया तो मैं कांग्रेसकी सभानेत्री सरोजिनी देवी कि वे कांग्रेससे आपके लिए मुबारकबादीका प्रस्ताव पास करा दें।

हिन्दू-मुस्लिम एकताके प्रश्नपर मानपत्रमें कुछ भी चर्चा नहीं की गई है। यह खेदकी बात है। यह शर्मकी बात है कि यहाँके हिन्दुओं और मुसलमानोंमें बहुत अनबन है। इस वक्त सारे हिन्दुस्तानकी आबोहवा खराब हो गई है। मैं कहता हूँ कि यदि हिन्दू और मुसलमान दोनोंको लड़ना है तो लड़ लें; पर आखिर अन्जाम क्या होगा? दोनोंको यहीं रहना है। न हिन्दू हिन्दुस्तान छोड़ सकते हैं और न मुसलमान ही। आखिरमें दोनोंको यहीं रहना होगा, दोनोंको मिलना होगा। अगर लखनऊमें हिन्दू-मुसलमान नहीं मिल सकते तो कहाँ मिल सकेंगे? यह बड़े शर्मकी बात है। अगर दोनों जातियाँ मिलकर रहें तो क्या कारण है कि हम जो चाहते हैं वह न मिल जाये? सारे संसारमें हमारी हँसी हो रही है। डा॰ अन्सारीने कहा कि बाहरवालोंको आश्चर्य है कि क्या गाय और बाजा ऐसी बातें है कि जिनके लिए हिन्दुस्तानी हिन्दू और मुसलमान लड़ते रहें और एक-दूसरेका सिर फोड़ते रहें।

मैं अभिनन्दन-पत्र नहीं चाहता। मैं प्रशंसा सुनते-सुनते थक गया हूँ। पर मैं आप लोगोंको यह जिम्मेदारी सौंपना चाहता हूँ कि जब मैं दूसरी बार लखनऊ आऊँ तो आप यह कह सकें कि लखनऊमें इस बीच झगड़ा नहीं हुआ और हिन्दू-मुसलमानोंमें मेल है। ईश्वर यहाँके रहनेवालोंको समझ दे। मैं अन्तमें इस मानपत्रके लिए आपको धन्यवाद देता हूँ।

आज,' २४–१०–१९२५
 

१८९. भाषण : लखनऊको सार्वजनिक सभामें[१]

१७ अक्तूबर, १९२५

. . .महात्माजीने यह कहते हुए अपना भाषण शुरू किया कि मुझे पहलेसे कुछ मालूम नहीं था, मैं नहीं जानता था कि मुझे लखनऊमें किसी आम सभामें बोलना पड़ेगा। मुझे बहुत दुःख है कि लखनऊ, जिसके बारेमें मेरा खयाल बहुत अच्छा था, साम्प्रदायिक झगड़ोंका अखाड़ा हो गया है। जब मैं दिल्लीमें २१ दिनका उपवास कर रहा था तब मुझे लखनऊके हिन्दू और मुसलमान नेताओंका एक पत्र मिला था, जिसमें मुझे मामले में बीच-बचाव करनेके लिए आमन्त्रित किया गया था। मैं उसके लिए तैयार हो गया, लेकिन फिर कोई आया ही नहीं। मैं समझता हूँ कि अच्छा हो कि आप मेरी सहायताके बिना खुद ही अपने झगड़े सुलझा लें। लेकिन यदि

 
  1. यह सभा हरकरणनाथ मिश्रकी अध्यक्षतामें अमीनुद्दौला पार्कमें हुई थी।