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७. टिप्पणियाँ
दादाभाई शताब्दी

आगामी ४ सितम्बरको दादाभाई नौरोजीको जन्म-शताब्दी है। भाई भरूचाने हमें समयपर इस बातकी याद दिलाई है। दादाभाईको हम स्नेहसे भारतका पितामह कहते थे। उन्होंने अपना जीवन भारतको समर्पित कर दिया था। दादाभाईने भारतको सेवाको अपना धर्म बना लिया था। भारतके दीन-दुःखी जन उनके मित्र थे। हमें भारतकी दरिद्रताके प्रथम दर्शन दादाभाईने ही करवाये थे। उन्होंने जो आंकड़े तयार किये थे उन्हें आजतक कोई गलत साबित नहीं कर सका है। दादाभाईने हिन्दू, मुसलमान, पारसी, ईसाई आदिके बीच कोई भेद नहीं माना था। उनकी दृष्टिमें तो सब भारतकी सन्तान थे और इसी कारण वे सब समान रूपसे उनकी सेवाके पात्र थे। हम देखते हैं कि उनकी दो पौत्रियोंका स्वभाव ठीक उनकी तरह ही है।

इस महान भारत सेवककी जन्म-शताब्दी हम किस तरह मनायेंगे? सभाएँ तो करेंगे ही। लेकिन केवल शहरोंमें नहीं बल्कि सभी ऐसे गाँवोंमें जहाँ कांग्रेसकी आवाज पहुँच सकती है। उन सभाओंमें हम क्या करेंगे? दादाभाईकी स्तुति? यदि केवल स्तुति ही करनी हो तब तो हम भाट-चारणोंको बुलाकर उनकी कल्पनाशक्ति तथा वाणीके निझरका उपयोग करके बैठे रह सकते हैं। यदि उनके गुणोंका हम अनुकरण करना चाहते हैं तो उनके गुणोंपर प्रकाश डालना और अपनी अनुकरण-शक्तिको आँकना होगा।

दादाभाईने भारतकी दरिद्रता देखी और हमें यह सिखाया कि उसकी औषध स्वराज्य है। लेकिन स्वराज्य प्राप्त करनेकी कुंजीकी खोज करनेका काम वे हमें सौंप गये। दादाभाईकी प्रसिद्धिका मुख्य कारण उनकी देश-भक्ति है। वे देश-भक्तिमें लीन ही हो गये थे।

हम जानते है कि स्वराज्य प्राप्त करनेका सर्वोत्तम साधन चरखा है। भारतकी दरिद्रताका कारण यह है कि उसका किसान सालमें छः महीने बेकार बैठा रहता है और हालाँकि किसानको ऐसा विवश होकर करना पड़ता है, लेकिन यदि यह विवशता अर्थात् आलस्य हमारा स्वभाव हो जाये तो फिर इस देशकी गुलामीसे मुक्ति नहीं हो सकती; इतना ही नहीं वह इससे पूरी तरह बरबाद हो जायेगा। इस आलस्यको दूर करनेका एकमात्र उपाय चरखा है। इसलिए चरखेकी प्रवृत्तिको उत्तेजन प्रदान करनेकी दिशामें किया गया प्रत्येक कार्य दादाभाईके गुणोंका अनुकरण है।

चरखा अर्थात् खादी, चरखा अर्थात् विदेशी वस्त्रका बहिष्कार, चरखा अर्थात् गरीबोंके झोंपड़ोंमें साठ करोड़ रुपयोंका पहुँचना।

या अखिल भारतीय देशबन्धु स्मारकका उद्देश्य भी चरखा प्रचार ही है। इसलिए उस दिन इस कोषके लिए चन्दा इकट्ठा करना भी दादाभाईकी जयन्ती मनाने के समान है। इससे उस दिन लोग मिलकर विदेशी वस्त्रका सर्वथा त्याग करने, केवल हाथकते सूतकी खादी पहनने और नियमित रूपसे कमसे-कम आधा घंटा कातनेका