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१९०. भाषण : सीतापुरमें

१७ अक्तूबर, १९२५

सीतापुरकी नगरपालिकाने लालबागमें महात्मा गांधीको एक अभिनन्दन-पत्र भेंट किया। अभिनन्दन-पत्र नगरपालिकाके अध्यक्ष बाबू शम्भूनाथने पढ़ा। उसमें महात्माजीसे अनुरोध किया गया कि उन्हें तो देश-विदेशकी नगरपालिकाओंके कार्य-कलापोंका विस्तृत अनुभव है, इसलिए वे कुछ ऐसे सुझाव दें, जिनको आदर्श मानकर सीतापुरकी नगरपालिकाके सदस्य नगरको सुधारनेके लिए प्रयत्न कर सकें। उन्होंने कहा कि यह मानपत्र भेंट करने के लिए सिर्फ एक रुपयका खर्च स्वीकार किया गया है।

उत्तरमें महात्मा गांधीने कहा कि अगर मैं सीतापुर नगरपालिकाका सदस्य होता तो इस कामके लिए एक पैसा भी स्वीकृत न करता। उन्होंने कहा कि मैं कांग्रेसियोंके अपने देशभाइयोंकी सेवा करनेके लिए नगरपालिका और जिला बोर्डमें प्रवेश करनेके खिलाफ नहीं हूँ। लेकिन अपनी महत्त्वाकांक्षाओंकी पूतिके लिए और स्वार्थपूर्ण उद्देश्योंसे किसीको इन स्थानीय संस्थाओंका सदस्य बननेकी कोशिश नहीं करनी चाहिए। सेवा और आत्मत्यागकी सच्ची भावनाके बिना नगरपालिकामें प्रवेश करना बेकार है। मुझे नगरपालिकाका एकमात्र आदर्श यही मालूम है कि नगरको साफ-सुथरा और रोगोंसे मुक्त रखा जाये, गरीबोंकी मदद की जाये और उनके हलकोंको गन्दगीसे दूर रखा जाये तथा ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी जाये जिससे गन्दी बस्तियाँ पनप ही न सकें।

आर्थिक तंगीको आड़ नहीं लेनी चाहिए। अगर पैसा न हो तो नगरपालिकाके सदस्योंको अपने हाथसे काम करनेके लिए तैयार रहना चाहिए। इस प्रकार वे ऐसा उदाहरण पेश करेंगे जिसका सभी अनुकरण करेंगे और नगरपालिकाके कार्यकलापोंकी प्रगतिके मार्गकी सारी कठिनाइयाँ निश्चित रूपसे दूर हो जायेंगी।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, २४–१०–१९२५