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अस्पृश्यताके सम्बन्धमें


वैद्य सभाके मानपत्रका उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि अखबारोंमें और सभामंचोंसे उन बातोंके लिए मेरी तीव्र आलोचना की गई है, जो मैने वैद्योंके बारेमें कही हैं। लेकिन मेरा अब भी वही विचार है। मैं अपनी बात वापस नहीं ले रहा हूँ और न यह मानता हूँ कि उसका एक भी शब्द अनुचित है। मुझे लगता है कि लोगोंने मुझे गलत समझा है। मैंने जो टीका-टिप्पणी की, वह आजके वैद्योंको लक्ष्य करके की है, न कि उस आयुर्वेदिक प्रणालीको लक्ष्य करके, जिसकी वे लोग सेवा कर रहे हैं। मैं खुद इस प्रणालीके खिलाफ नहीं हूँ। लेकिन उनका आत्म-सन्तोषी रुख मुझे पसन्द नहीं है और न वे तरीके ही मुझे पसन्द हैं जिनपर वैद्यगण चल

मैंने उनको आलोचना इसलिए की है कि उन्होंने आयुर्वेदको नहीं समझा है और उसके साथ न्याय नहीं किया है। मैंने आयुर्वेदको प्रगतिके लिए अपनी तरफसे भरपूर कोशिश की है और वैद्योंकी जितने तरीकोंसे सहायता हो सकती है, करनका प्रयत्न किया है, लेकिन उनका काम देखकर निराशा होती है। वैद्योंको आगे बढ़ना चाहिए। यह सोचना गलत है कि उन्हें पश्चिमसे कुछ भी नहीं सीखना है। यद्यपि मैंने आत्माको उपेक्षाके लिए पश्चिमी दुनियाकी भर्त्सना की है, फिर भी उसने कई क्षेत्रोंमें जो कर दिखाया है, उसके प्रति मेरी आँख बन्द नहीं है। वैद्योंको पश्चिमसे जरूरी बातें सीखकर अपने ज्ञानको पूरा करनेके लिए तैयार रहना चाहिए। उन्हें ऐसा मानकर निश्चिन्त नहीं बैठना चाहिए कि उनकी चिकित्सा-प्रणाली में जो कुछ है, उससे आगे चिकित्सा-शास्त्रमें कुछ है ही नहीं। उन्हें जागरूक और क्रियाशील रहना चाहिए और उनका लक्ष्य "प्रगति" होना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, २४–१०–१९२५
 

१९२. अस्पृश्यताके सम्बन्धमें

एक मित्रने अस्पृश्यताके सम्बन्धमें कुछेक प्रश्न पूछे हैं, मैं अपनी अल्प-बुद्धिके अनुसार नीचे उसके उत्तर दे रहा हूँ।[१] मेरे विचारानुसार हम आज जिस अस्पृश्यताका पालन करते हैं वह हिन्दू धर्मका अंग नहीं है और न होना चाहिए। हमारी आजकी अस्पृश्यतामें केवल अज्ञान और

 
  1. पत्र-लेखकने अस्पृश्यता और रोटी-बेटी व्यवहारकी तुलना हिन्दू समाजको बचानेके लिए खड़ी की गई तीन दीवारोंसे की थी और पूछा था कि (१) क्या हिन्दुओंके लिए रोटी-बेटी व्यवहारकी दीवारोंकी भाँति तीसरी अस्पृश्यताकी दीवार भी मूल सिद्धान्तमें नहीं आती तथा (२) बाहरी दीवारको गिरा देनेते क्या अन्दरकी दो दीवारें कमजोर न पड़ जायेंगी। उसका तीसरा प्रश्न था कि चूंकि अस्पृश्यता निवारण आन्दोलन करनेवाले अधिकांश लोग जाति सुधार भी चाहते हैं तथा आप भी अन्त्यजोंके हाथसे पानी-पीनेमें कोई हानि नहीं देखते तो फिर क्या अस्पृश्यता निवारण-सम्बन्धी आन्दोलन रुक जायेगा।