अन्त्यज बालक गन्दे ही होते हों, यह अनिवार्य बात नहीं है। अनेक अन्त्यज बालकोंको मैने अन्त्यजेतर बालकोंसे अधिक साफ-सुथरा देखा है। नियम तो यह हो सकता है : कोई बालक जबतक सफाईका अमुक स्तर प्राप्त नहीं कर लेता तबतक या तो उसे स्कूलमें न लिया जाये अथवा उसे गन्दे बच्चोंके लिए नियत किये गये वर्गमें भेज दिया जाये और वहाँ उसे खास तौरपर सफाईकी शिक्षा दी जाये। अन्त्यज बालक गन्दा ही होगा, और इसलिए उसे साफ-बच्चोंके स्कूलमें दाखिल नहीं करना चाहिए, यह नियम तो वैसा ही हुआ जैसा उपनिवेशोंमें भारतीय-मात्रके साथ होता है। भारतीयके रूप में पैदा होना ही वहाँ अपराध है। सामान्य रूपसे व्यावहारिक बात तो यह है कि अन्त्यज बालकोंके लिए काफी तादादमें स्कूल खोले जायें। चाहे जितनी भी कोशिश क्यों न की जाय लेकिन सभी अन्त्यज बालक सर्वसाधारण प्राथमिक स्कलोंमें आते ही नहीं हैं। अतएव यदि वे स्वच्छताके नियमोंका पालन करते हैं तो उन्हें सामान्य प्राथमिक स्कूलोंमें दाखिल होनेकी छूट मिलनी चाहिए, और साथ ही उनको खास उत्तेजन देने के लिए अलग स्कूल भी होने चाहिए।
- [गुजरातीसे]
- नवजीवन, १८-१०-१९२५
१९३. मारवाड़ियोंके सम्बन्धमें
किसी एक ही प्रश्नपर सन् १९२१ की जागृतिका असर हुआ हो सो बात नहीं है। यह एक ऐसी व्यापक प्रवृत्ति थी इसका सब जातियों और सब प्रश्नोंपर असर हुआ। यदि कोई बिना सोचे यह मानना चाहे कि यह प्रवृत्ति चार दिनकी चाँदनी थी तो यह उसकी मर्जीकी बात है; लेकिन समयके साथ यह मान्यता बिलकुल झूठी सिद्ध होकर रहेगी। आन्दोलनका स्वरूप भले ही बदला हुआ दिखाई दे; परन्तु वास्तवमें तो मूल वस्तु वही बनी है यह स्पष्ट हुए बिना नहीं रहेगा। यह विचार भागलपुरमें मारवाड़ी सम्मेलनमें[१] दिये गये भाषणपर विचार करते हुए मेरे मनमें आता है। मारवाड़ी समाजमें अनेक प्रकारके सुधारोंके प्रयत्न किये जा रहे हैं। यह सम्मेलन अग्रवाल मारवाड़ियोंका था। गुजरातमें जिस तरह किसी-किसी स्थानपर पंच लोग अन्त्यज प्रश्नके निमित्त बहिष्कारके शस्त्रका उपयोग कर रहे हैं उसी तरह मारवाड़ी समाजमें भी उनके प्रमुख लोग अन्य प्रसंगोंमें इसी शस्त्रका उपयोग कर रहे हैं।
विधवा-विवाह, बाल-विवाह, आदि प्रश्न थोड़े-बहुत लगभग समस्त हिन्दू समाजपर लागू होते हैं। इसीसे मारवाड़ी समाजसे मैंने जो बातें कही थीं उनमें से यद्यपि थोड़ी-सी बातें में 'यंग इंडिया' में दे चुका हूँ तथापि मैं यहाँ उनपर कुछ विस्तारसे कहना चाहता हूँ। बहिष्कार एक भयंकर शस्त्र है और यदि इसका उपयोग सावधानीसे न किया जाये तो यह केवल हिंसाका स्वरूप पकड़ लेता है और जब बहिष्कार हिंसा-
- ↑ सम्मलेन १ अक्टूबरसे ४ अक्टूबर १९२५ तक हुआ था, भाषणके लिए देखिए, "भाषण : मारवाड़ी अग्रवाल सभा, भागलपुरमें", १–१०–१९२५।