पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/३९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

१९५. भाषण : संयुक्त प्रान्त राजनीतिक सम्मेलनमें[१]

१८ अक्तूबर, १९२५

श्री गांधीसे, जो अभीतक सूत कात रहे थे,. . .परिषद्के सम्मुख भाषण करनेका अनुरोध किया गया। उन्होंने कहा, मैं हिन्दू-मुस्लिम समस्याके सम्बन्धमें कुछ नहीं कहूँगा, क्योंकि अब दो में से किसी जातिपर, कमसे-कम उन लोगोंपर, जो झगड़ रहे हैं—मेरा कोई वश नहीं रह गया है। मैं चरखे और अस्पृश्यताके विषयमें विस्तारसे बोलूँगा। अध्यक्ष महोदयने चरखका उल्लेख-मात्र किया और गैर-हिन्दू होनेके नाते उन्होंने अस्पृश्यताके विषय में कुछ नहीं कहा। किन्तु, चरखा और खावी, ये दोनों चीजें तो मेरा धर्म है और मैं इनके सम्बन्धमें अपनी बात कहे बिना नहीं रह सकता। मैं तो समझता हूँ कि अगर भारतका हर आदमी चरखेको अपना ले तो कोई भी भूखों न मरे। मैंने ग्रामीण क्षेत्रोंका दौरा करके देखा है कि किसान लोग किस तरह गरीबीमें पिस रहे हैं। वर्षमें कमसे-कम चार महीने वे बेकार रहते हैं, और अगर वे अपने खाली समय में कताई किया करें तो उनको अल्प आयमें काफी वृद्धि हो जाये।

यन्त्रोंपर उन किसानोंके श्रमका उपयोग नहीं हो सकता। जहाँ कहीं भी लोग चरखा चला रहे हैं, उनकी आय अवश्य बढ़ी है। बंगालमें मैंने देखा कि हर मजदूर परिवारकी आयमें प्रति मास २ रुपयेकी वृद्धि हुई है, जब कि लॉर्ड कर्जनके अनुसार प्रति व्यक्ति उनकी वार्षिक आय सिर्फ ३० रुपये है। इस प्रकार चरखेसे आपको प्रति व्यक्ति २४ रुपयको अतिरिक्त वार्षिक आय हो सकती है। हर ६ रुपयेपर रुईकी कीमतके रूपमें २ रुपये किसानोंको मिलेंगे, ५ या ४ रुपये कतैयों और बुनकरोंको।

अभी कुछ ही समय पहले मैं अटरियामें था। वहाँ मैंने देखा कि कताईको एक सहायक धन्धेके रूपमें अपना लेनेसे हजारों परिवारोंकी दशा कितनी सुधर गई है। लेकिन अगर गाँवोंमें यह सहायक धन्धा रूढ़ करना है तो यह जरूरी है कि लोग खादी पहनना शुरू करें। उन्होंने आगे कहा कि आम जनताके सहयोग और सहायताके बिना स्वराज्य सम्भव नहीं है। यह सहयोग और सहायता ग्राम-संगठनके बिना नहीं मिल सकती, और दूसरे इस संगठनका एकमात्र उपाय चरखा है। जो लोग मेरे इस चरखा-प्रेमके कारण कहते हैं कि यह आदमी तो पागल हो गया है, वे अगर ऐसी कोई दूसरी चीज सुप्ता सकें जिससे इसी लक्ष्यको इतनी ही अच्छी तरह या इससे भी अच्छे ढंगसे प्राप्त किया जा सकता हो तो मुझे चरखा छोड़ते हुए कोई

 
  1. यह सम्मेलन शौकत अलीकी अध्यक्षतामें सीतापुरके लाल बागमें हुआ था। उपस्थित लोगोंमें मुहम्मद अली, मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू और डा॰ सैयद महमूद भी थे।

२८–२४